कुंभ की कथा
देवताओं और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन से अमृत का निर्माण किया। सभी देवता जानते थे कि अगर दानवों ने अमृत पी लिया तो वह अमर हो जाऐंगे और हमेशा स्वर्ग में राज करेंगे। इसीलिए जैसे ही अमृत का निर्माण हुआ देवता अमृत का घड़ा लेकर भाग निकले। सभी दानव, देवताओं के पीछे भागने लगे। जब देवता दानवों से भाग रहे थे तब अमृत की बूंदे धरती पर गिरी। वह स्थान थे- प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।
यह युद्ध 12 दिनों तक चला। देवताओं के गृह पर 1 दिन 1 साल के बराबर होता है इसलिए देवताओं के 12 दिन हमारे 12 साल के बराबर थे। इसीलिए कुंभ मेला हर बारह साल में एक बार चार स्थानों पर मनाया जाता है। परन्तु इस वर्ष ग्रहों की चाल के साथ ही यह कुम्भ 11 वर्षों बाद आया है।
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कुंभ की मान्यता
ऐसी मान्यता है कि इन चार स्थानों को कुंभ मेला के समय देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इसलिए इस समय यहाँ डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि सभी हिन्दु कुंभ या कोई और त्यौहार को नहाये बिना नहीं मनाते हैं।
गंगा के इतने मैले होने के बावजूद भी सभी श्रृद्धालू बिनी किसी हिचक के गंगा में डुबकी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है कि पृथवी से स्वर्ग का रास्ता कुंभ के समय खुल जाता है। और पवित्र आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है।
कुंभ के समय शाही स्नान का महत्व
शाही स्नान में अलग-अलग अखाड़ों के साधु-संत सोने-चांदी की पालकियों व हाथी-घोड़ों पर बैठकर स्नान के लिए पहुंचते हैं। सभी साधु अपनी शक्ति और वैभव का प्रदर्शन करते हैं। इसे राजयोग स्नान भी कहा जाता है। इसमें साधु-संत एक तय समय पर ही डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में डुबकी लगाने से अमरता का वरदान मिल जाता है। इसी वजह से कुंभ मेला इतनी सुर्खीयों में रहता है।
शाही स्नान के बाद ही आम लोगों को नदी में डुबकी लगाने की अनुमति दी जाती है। यह शाही स्नान मुहूर्त के अनुसार सुबह 4 बजे शुरू हो जाता है। सुबह 4 बजे से पहले ही साधु-संत एकत्रितत हो नारे लगाने लगते हैं। कुछ साधु अर्धवस्त्र व कुछ र्निवस्त्र होकर डुबकी लगातो हैं।
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