- भये प्रगट गोपाला, दीन दयाला यसुमति के हितकारी.! हर्षित महतारी रूप निहारी मोहन मदन मुरारी.!!
- कंसासुर जाना मन अनुमाना पूतना बेग पठाई.! तेहि हर्षित धाई मन मुस्काई गयी जहाँ यदुराई.!!
- सोई जाई उठायी ह्रदय लगाई पयघर मुख महँ दीन्हा.! तब कृष्ण कन्हाई मन मुस्काई प्राण तासु हरि लीन्हा.!!
- जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये बस कर ताहि मुरारी.! गौअन हितकारी सुर मुनि सुखकारी नख पर गिरवर धारी.!!
- कंसासुर मारो अति हंकारी वत्सासुर संहारी.! बकासुर आयो बहुत डरायो ताको बदन बिदारी.!!
- तेहि दीन जान प्रभु चक्रपाणि ताहि दीनो है निज लोका.! ब्रह्मा सुर आयो बहु सुख पायो, बिगत भयो सब शोका.!!
- यह छंद अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावैं.! तेहि सम नहिं कोई, त्रिभुवन सोई मनवाँछित फल पावैं.!!
नन्द यशोदा तप कियो, मोहन से मन लाय.! देखो चाहत बाल सुख, रही कछुक दिन जाय.!!
जो नक्षत्र मोहन भये, सो नक्षत्र, पर आय.! चारू बँधाये रीति सब, करन यशोदा माय..!!
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