कोकिला व्रत करने से ना सिर्फ शीघ्र विवाह के योग बनते हैं बल्कि भगवान शिव जैसा वर भी मिलता है. इस समय पर किया जाने वाला पूजन जीवन की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है.
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कोकिला व्रत को विधि-विधान
पंचांग अनुसार, कोकिला व्रत का समय आषाढ़ महीने की पूर्णिमा के करीब मनाया जाता है. कोकिला व्रत का समय 2 जुलाई को होगा है. कोकिला व्रत का आरंभ 20:21 बजे से शुरू होगी और 3 जुलाई को शाम 05:08 बजे समाप्त होगी. कोकिला व्रत करने से विवाहित महिलाओं को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. कोकिला व्रत के समय इस व्रत को करने से साधक पर महादेव की कृपा सदैव बनी रहती है. आइए जानते हैं कोकिला व्रत की पूजा विधि और कथा.
कोकिला व्रत कथा
कोकिला व्रत का समय बेहद शुभ एवं सकारात्मक होता है. शास्त्रों में वर्णित है कि माता सती ने भगवान शिव को पाने हेतु पूर्वकाल में कोकिला व्रत किया था. इस व्रत के प्रभाव से माता सती को भगवान शिव का संग प्राप्त हुआ था. कोकिला व्रत करने से न केवल शीघ्र विवाह के योग बनते हैं, जीवन में वैवाहिक सुख अवश्य प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सुहाग और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसलिए महिलाएं कोकिला व्रत विधि-विधान से करती हैं.
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कोकिला व्रत के दिन प्रात:काल समय में नित्य क्रियाओं से निवृत होकर पूजन का आरंभ करना चाहिए. सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए, इसके बाद पूजा घर में एक भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. पंचोपचार द्वारा पूजा करनी चाहिए. भगवान शिव और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा करते हुए मंत्रों का जाप भी करना चाहिए.
पूजा में भगवान शिव को भांग, धतूरा, बेलपत्र, लाल फूल, केसर आदि चीजें अर्पित करना अत्यंत शुभ होता है. मिठाई और मौसमी फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए. इस समय शिव चालीसा का पाठ करना और शिव पार्वती मंत्र का जाप करने से पूजा के शुभ फल प्राप्त होते हैं. पूजा में आरती-अर्चना कर अपनी मनोकामना पूर्ति की कामना करते हुए व्रत को करना चाहिए.