पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु, राम और कृष्ण को तुलसी जी का भोग लगाने से भगवान प्रसन्न होते हैं और प्रसाद को ग्रहण करते हैं। परंतु गणेशजी के भोग में तुलसी का प्रयोग वर्जित बताया गया है। गणेशजी को तुलसी का भोग लगाने से भगवान नाराज हो जाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि बुधवार का दिन भगवान गणेश जी को पूर्ण रूप से समर्पित है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा सबसे पहले की जाती होती है। कोई भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा होती है। भगवान गणेश अपने भक्तों के सभी कष्टों व बाधाओं को हर लेते हैं, इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता के नाम से भी पूकारते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं भगवान गणेश की पूजा में तुलसी का इस्तेमाल करना क्यों वर्जित माना गया है, आइए जानते हैं इसके पीछे का कारण।
गणेश जी की पूजा में तुलसी क्यों नहीं चढ़ती-
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, राजा धर्मात्मज की बेटी तुलसी विवाह की इच्छा को लेकर तीर्थयात्रा पर निकली थी। तीर्थ यात्रा के दौरान तुलसी ने देखा कि गणेश जी गंगा किनार तपस्या कर रहे हैं। इसी कथा के अनुसार भगवान गणेश तपस्या मे मग्न थे। उनके शरीर में चंदन का लेप लगा हुआ था। गले में रत्नों की माला थी।
कमर में रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। वो एक सिंहासन पर बैठकर तपस्या कर रहे थे। भगवान गणेश का सुंदर स्वरूप देखकर तुलसी उनसे आकर्षित हो गई थी। उनसे विवाह करने की इच्छा जताते हुए उनकी तपस्या भंग कर दी। भगवान गणेश इस बात से क्रोधित हो गए और तुलसी के इस काम को अशुभ बताया।
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उन्होंने तुलसी की मंशा जानकर कहा कि मैं ब्रह्माचारी हूं। उनके विवाह का प्रस्ताव उन्होंने ठुकरा दिया।
इस बात को सुनकर तुलसी गुस्से में आकर भगवान गणेश को श्राप दिया कि तुम्हारी एक नहीं दो शादी होंगी। यह बात सुनकर भगवान गणेश ने भी उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारा विवाह एक राक्षस से होगा। इस बात को सुनकर तुलसी ने गणेश जी से माफी मांगी और इसके साथ ही गणेश जी ने कहा, भगवान विष्णु और कृष्ण की प्रिय होने के कारण कलयुग में तुम्हारी पूजा से लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हें चढ़ाना अशुभ माना जाएगा। इसके बाद से ही भगवान गणेश की पूजा में तुलसी को नहीं चढ़ाया जाता है।