एक पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी और दरिद्रा एक आश्रय की खोज में भगवान विष्णु के पास गई और उनसे प्रार्थना करने लगी कि वह उनका मार्ग दर्शन करें, उन्हें रहने का कोई स्थान बताए। उनकी प्रार्थना को स्वीकार करके विष्णु भगवान ने दरिद्रा और लक्ष्मी को पीपल के वृक्ष पर रहने की अनुमति प्रदान की । इस तरह वे दोनों पीपल के वृक्ष में रहने लगीं। तथा विष्णु भगवान की ओर से उन्हें यह वरदान भी प्रदान हुआ कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसे शनि ग्रह के दोष व बुरे प्रभावों से मुक्ति मिलेगी। एवं उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी।
पीपल का पेड़ सभी को शनि के दुष्प्रभावों से बचाता है। यह इसलिए भी जरुरी है क्यूंकि शनि के प्रकोप से ही व्यक्ति का ऐश्वर्य नष्ट होता है। परन्तु यदि वह व्यक्ति पीपल देव की पूजा करें तो उसके सारे कष्ट ईश्वर द्वारा हर लिए जाते हैं। पीपल के पेड़ की इतनी महिमा है की लोग आज भी इसे काटने या नष्ट करने से डरते हैं। पीपल के वृक्ष की आराधना की जाती है इसलिए इसे काटना शुभ नहीं माना जाता है। यदि अगर फिर भी किसी परिस्थिति में इसे काटा जाना पड़ें तो यह कार्य केवल रविवार को ही संपन्न किया जा सकता है।
गीता में पीपल की तुलना मनुष्य के शरीर से की गई है। 'अश्वत्थम् प्राहुख्ययम्' अर्थात अश्वत्थ (पीपल) का काटना शरीर-घात के अर्थात शरीर को नुकसान करने के समान है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी पीपल प्राणवायु का केंद्र है। यानी पीपल का वृक्ष पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करता है और ऑक्सीजन छोड़ता है।जिसके कारण वातावरण के लिए यह वृक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण कहलाता है। संस्कृत में इस वृक्ष को 'चलदलतरु' कहते हैं। अक्सर देखा जाता है की हवा न भी हो तो पीपल के पत्ते हिलते नजर आते हैं। ' पात सरिस मन डोला'- अर्थात शायद थोड़ी सी हवा के हिलने की वजह से तुलसीदास ने मन की चंचलता की तुलना पीपल के पत्ते के हिलने की गति से की है।
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