सुंदरकांड का पाठ करने से भक्त के भीतर आत्मविश्वास का संचार होता है। किसी भी प्रकार की परेशानी से वह घबराता नहीं है बल्कि हनुमान जी की पूजा से उसे इन विपदाओं से निकालने की शक्ति प्राप्त होती है। पूर्ण रामचरितमानस श्री राम प्रभु के गुणों व पुरुषार्थ की महिमा की गाथा है परन्तु केवल इसका सुंदरकांड अध्याय भक्त श्री हनुमान जी की विजय व भक्तिप्रेम को दर्शाता है। वह कांड भक्त की अपने प्रभु के लिए किए संघर्ष को दर्शाता है।
श्री हनुमान, जो कि जाति से वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए और वहां सीता की खोज की। लंका को जलाया और सीता जी का संदेश लेकर आए। यह एक व्यक्ति की जीत का है, जो अपनी इच्छा शक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है। इसमें जीवन में सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी हैं। इसलिए पूरी रामायण में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है। उसके अंदर विपदा को देखकर कमजोर न पड़ने व उनपर जीत का डंका बजाने का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
हनुमान जी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है। यह एक श्रेष्ठ और सबसे सरल उपाय है। इसी वजह से काफी लोग सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप से करते हैं। विद्यार्थियों को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए। यह पाठ उनके भीतर आत्मविश्वास को जगाता है तथा उन्हें सफलता के और करीब ले जाता है। सुंदरकांड के प्रत्येक श्लोक में जीवन के अर्थ बताए गए हैं। उसके द्वारा वर्णन किया गया है की कैसे मेहनत और आत्मविश्वास व्यक्ति की कार्य कुशलता को सफलता के मार्ग पर ले जाने में सक्षम रहता है।
रोजाना सुंदरकांड का पाठ व्यक्ति का मन शुद्धकर उसकी सभी इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति प्रदान करता है। इस पाठ से ग्रहों के अशुभ प्रभावों से छुटकारा मिलता है। यदि आप स्वयं यह पाठ न कर सकें तो आप इसे सुन भी सकते हैं। व्यक्तिगत रूप से इस पाठ के कारण मनुष्य की आत्मा शुद्ध होती है व उसकी अनुकूलता का प्रमाण स्वयं उसके कार्य से प्राप्त होता है।