छिन्नमस्तिका जयंती पर बिष्णुपुर के छिन्नमस्ता मंदिर में कराएं अनुष्ठान और पाएं कर्ज से मुक्ति : 7-मई-2020
छिन्नमस्तिका का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी अर्थात जिनका शीश न हो। देवी अत्यंत महिमाकारी हैं वह सदैव अपने भक्तों की रक्षा करती हैं तथा उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देती। देवी को त्याग एवं शक्ति की देवी माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार उन्होंने अपनी सखियों की भूख मिटाने के लिए अपने सुखों का त्यागकर उनकी कामना की पूर्ति की थी। उन्होंने जया तथा विजया को अपना शीश काटकर रक्तपान कराया था। उनके रक्त का सेवनकर उनकी सखियों का पेट भर गया था। जिसके पश्चात वह सदैव के लिए देवी की कृपा से परिपूर्ण हो गई।
देवी के इस उदार भाव को एक माता के रूप में अपने बालक के लिए अपने सुख -सुविधाओं के त्याग के रूप में भी बताया गया है। इनके माध्यम से समस्त संसार को शिक्षा प्रदान की गयी है कि जब एक माँ के रूप में साक्षात देवी के समक्ष भी अपने व अपने बच्चों के सुखों के चुनाव का चयन होता है। तब भी देवी स्वयं के सुखों से पहले अपने बालकों के विषय में विचारती हैं तथा उनके हित की चेष्टा करती हैं।
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जिस प्रकार एक साधारण माँ अपने बालक को विपत्ति के समय अकेला नहीं छोड़ती, उसी प्रकार जब देवी के बालक अर्थात उनके भक्तों पर विपदाओं का संकट आन पड़ता है तो वह स्वयं अपने बालकों की रक्षा करती हैं। परेशानी चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो हमें देवी पर भरोसा रखना चाहिए। वह सदैव अपनी माया से श्रद्धलुओं के सभी कष्टों का निवारणकर उन्हें सुखमय जीवन प्रदान करेंगी। देवी की आराधना से शत्रुओं का विनाश होता है व भक्त के घर में सुख-शांति व समृद्धि का वास होता है।
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