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जानिए क्यों मनाई जाती है छिन्नमस्तिका जयंती

MyJyotish Expert Updated 04 May 2020 07:05 PM IST
Know why Chinnamastika Jayanti is celebrated
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देवी छिन्नमस्ता दसमहाविद्याओं में तीसरी महाविद्या है। उनकी आराधना शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। वह शक्ति का भयावह रूप है परन्तु उनके त्याग व साहस का मुक़ाबला इस संसार में कोई भी नहीं कर सकता है। अपनी प्रतिमा स्वरूप  में वह छिन्न मस्तक हैं। अपने स्वरूप द्वारा उन्होंने संसार को त्याग और साहस का पाठ पढ़ाया है। देवी ने यह स्वरूप अपने बच्चों की मनोकामना की पूर्ति के लिए लिया है।



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मान्यताओं के अनुसार देवी अपनी सहेलियों जया और विजया की भूख को समाप्त करने के लिए अपना शीश अपने शरीर से अलग कर देती हैं। उनके धड़ निकले  रक्त का पान करके जया और विजया का जीवन सफल बन जाता है। उनके धड़ से रक्त की तीन धाराएं निकलती हैं जिसमें से एक जया के मुख में दूसरी विजया के मुख में तो तीसरी स्वयं माता के मुख में जाती है।

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देवी की कृपा से भक्तों का कल्याण होता है। इस रूप में देवी ने समाज को दर्शाया है की किस प्रकार एक माँ अपने सुखों का त्यागकर अपने बच्चों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। एक माँ की शक्ति से बढ़कर संसार में दूसरी कोई और शक्ति नहीं जो स्वयं की इच्छाओं से पहले किसी और का सोचें। देवी वह प्रतिमा हैं जो मनुष्य को बलिदान की शक्ति का एहसास दिलाने में सक्षम होती है।

उनकी उत्पन्नता के दिन को ही छिन्नमस्ता जयंती के रूप में मनाया जाता है। देवी अपने भक्तों पर आने वाली विपदाओं से सदैव उनकी रक्षा करती हैं। उन्हें किसी प्रकार के दुःख का सामना नहीं करने देती। उनकी पूजा के लिए व्यक्ति को जयंती के दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि कर लेना चाहिए। देवी की विधिवत पूजा आराधना करनी चाहिए। देवी की पूजा विशेष रूप से यदि शाम के समय की जाए तो वह शुभ माना जाता है। उन्हें सरसों के तेल से जलाएं दीपक अर्पण करने चाहिए। उन्हें उड़द से बने मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। उन्हें नीले फूल अर्पण करने चाहिए। तथा देवी के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा संपन्न करनी चाहिए। माना जाता है की सच्चे मन से देवी की उपासना करने पर देवी अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।

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