तो आइए आज हम जानते हैं माता धूमावती के बारे में...
माता धूमावती को कौवा अति प्रिय है इसलिए उनका वाहन भी कौवा है और साथ ही माता को सफेद रंग के वस्त्र पसंद है इसलिए माता श्वेत वस्त्र को धारण कर और खुले केश के साथ अपने वाहन पर विराजमान रहती है।
शास्त्रों के मुताबिक, माता की पूजा गुप्त नवरात्रों में की जाती है। कहते है जो भक्तों सच्चे मन से माता की पूजा करता है। उसके जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं और साथ ही सभी दुखों से छुटकारा मिलती है।
धूमावती मंत्र
धूमावती जयंती पर रुद्राक्ष माला से 108, 51 या 21 बार इन मंत्रों का जाप करें।
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्॥
धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
माता की कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, माना जाता है कि माता पार्वती को एक दिन बहुत तेज भूख लगी, लेकिन कैलाश पर उस दिन खाने को कुछ भी माता को नहीं मिला और फिर माता भगवान शिव के पास गई और खाने को कुछ मांगा। लेकिन भगवान समाधि अवस्था में होने के कारण उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। माता ने कई बार पुछा पर कोई जवाब नहीं मिला। फिर माता को भगवान शिव पर गुस्सा आ गया और भूख की बैचेन होने के कारण माता भगवान शिव को ही निगल गई। शिव के गले में विष होने के कारण माता का शरीर काला और अत्यंत उग्र रूप में दिखने लगीं जिसके बाद भगवान शिव ने माता से कहां आप को इस रूप को धूमावती के रूप में जाना जाएगा। पति को निगलने के कारण से इस रूप को विधवा के रूप में भी जाना जाएंगा। इसलिए माता को विधवा स्वरूप श्वेत वस्त्र और खुल केश में पूजा जाता है।