मान्यताओं के अनुसार एक बार सतयुग में ब्रह्माण्ड विनाशकारी तूफ़ान आया था। जिसके कारण चारों ओर सब कुछ तहस-नहस होने लगा था। यह तूफ़ान प्राणियों पर जीवन बहुत बड़ी विपदा का आगमन था। इस तूफ़ान से सारा संसार नष्ट होने लगा था जिसके कारण संसार का संरक्षण करना असंभव सा हो गया था। यह तूफ़ान क्षण दर क्षण बढ़ता ही जा रहा था जिसके संकट को देखते हुए भगवान विष्णु बहुत चिंतित हो उठे। इस विनाशकारी तूफ़ान का समाप्त होना बहुत जरुरी हो गया था अन्यथा पूर्ण ब्रह्माण्ड का सर्वनाश होना तय था।
छिन्नमस्तिका जयंती पर बिष्णुपुर के छिन्नमस्ता मंदिर में कराएं अनुष्ठान और पाएं कर्ज से मुक्ति : 7-मई-2020
इस तूफ़ान का कोई हल न निकलने से परेशान होकर विष्णु जी महादेव की शरण में जा पहुंचे व उनका ध्यान करने लगे। विष्णु जी को इस तरह देख महादेव प्रकट हुए तथा विष्णु जी को सुझाव दिया की वह शक्ति रूप का ध्यान करें अर्थात शक्ति के सिवा कोई इस समस्या का हल नहीं दे सकता है। शिव जी का कथन स्वीकार करके विष्णु जी सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर के किनारें कठोर तप करने लगे। उनके तप से प्रसन्न होकर देवी बगलामुखी वहां प्रकट हुईं जिनके हृदय में उत्पन्न हुई शक्ति से तूफ़ान का अंत हो गया। भगवान विष्णु के तेज से उत्पन्न होने के कारण इन्हें माता वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता है।
देवी बगलामुखी की कृपा से व्यक्ति के दुखों व शत्रुओं का विनाश होता है। देवी को पीताम्बरा के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि उन्हें पीला रंग बहुत पसंद है। उनकी पूजा में हल्दी की माला, पीले फूल, पीले फल, पीले चावल, पीली मिठाइयों का उपयोग करना बहुत शुभ माना जाता है। देवी स्वयं पीलें रंग की साड़ी स्वर्ण आभूषण से अलंकृत किए हुए है। देवी की पूजा करने से पहले तन मन से पवित्र होना बहुत आवश्यक है। प्रातःकाल उठकर स्नान आदि करना चाहिए और पूर्ण श्रद्धा और मन से देवी की उपासना करनी चाहिए। उनके आशीर्वाद से भक्तों के सभी काम बनने लगेंगे।
यह भी पढ़े :-
जानिए देवी बगलामुखी कैसे करती हैं नकारात्मक शक्तियों का सर्वनाश
जानिए माँ बगलामुखी कैसे कहलाईं सर्वशक्तिशाली व राजयोग की देवी
जानिए भगवती भवानी कैसे करेंगी अपने भक्तों का उद्धार