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इस पर्व को भैरवाष्टमी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य ने अपनी क्षमताओं को भूलकर, अहंकार में आकर महादेव पर आक्रमण कर दिया था। जब उसका नाश करना अतिआवश्यक हो गया, तब भगवान शिव के रक्त से कालभैरव की उत्पत्ति हुई जिससे अंधकासुर का संहार संभव हुआ था। इसी कथन पर कालभैरव की उपासना भगवान शिव से पूर्व की जाती है। इससे भक्तों के व्यथा और दरिद्रता का नाश होता है। इस दिन महादेव के साथ-साथ माँ पार्वती एवं माँ दुर्गा जो की शक्ति के स्वरूप हैं, उनकी आराधना का भी विधान है।
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जीवन में सभी दुखों से दूर रहने के लिए कालाष्टमी पूजा की जाती है। यह वह दिन है जब व्यक्ति को भगवान शिव के सबसे उग्र अवतार की पूजा करने का अवसर मिलता है। काल भैरव काल या मृत्यु का प्रतीक है। परन्तु वह लोग जो प्रत्येक माह इस शुभ दिन पर व्रत और उपवास करते हैं, कालभैरव उनसे प्रसन्न होते हैं एवं उनकी रक्षा करते हुए उन्हें ख़ुशहाल जीवन प्रदान करते हैं। काल भैरव संघर्षों के निवारन के देवता हैं। यदि कोई उन्हें खुश करने में सक्षम हो जाता है, तो वह स्वयं अपने जीवन में सफलता पाने के लिए तैयार हो जाता है। काल भैरव अपने सभी भक्तों को मृत्यु से बचाते हैं। भले ही उनका कोई भी भक्त किसी भी बीमारी से पीड़ित हो, वह उसे जल्दी स्वस्थ होने और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद देते हैं। कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा शुभ मानी जाती है। इस दिन उनके पाठ और मंत्रों का उच्चारण भी किया जाता है। उनकी पूजा से आय एवं संसाधनों की समस्या का निवारण भी होता है।
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