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जानें क्या है संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा और महत्व

myjyotish expert Updated 22 May 2021 04:22 PM IST
जानें क्या है संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा और महत्व
जानें क्या है संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा और महत्व - फोटो : google
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 गणेश भगवान बुद्धि के देव तो है साथ ही साथ वो स़ंकट हरने वाले भी देव है ∣ उनकी शरण में जो व्यक्ति आ जाता है भगवान उसके सभी संकट क़ो हर लेते हैं ∣

भगवान गणेश की पूजा अर्चना कर अपने जीवन में आए बड़े से बड़े संकट को टाला जा सकता है ∣  इस बार संकट चतुर्थी 29 म ई 2021 को पड़ रही है ∣

आपको बता दे कि संकष्टी चतुर्थी का अर्थ है संकट को हरने वाली चतुर्थी होता है | इस दिन विघ्नहर्ता  गणेश जी का पूजन किया जाता है ∣

संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व

1. संकष्टी के दिन गणपति की पूजा-आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

2.शास्त्रों में भगवान गणेश जी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने भक्तों की सारी विपदाओं को दूर करते हैं और उनकी मनोकामनाएं को पूर्ण करते हैं।

 3.चन्द्र दर्शन भी चतुर्थी के दिन बहुत शुभ माना जाता है।

 4. सूर्योदय से प्रारम्भ होने वाला यह व्रत चंद्र दर्शन के बाद संपन्न होता है।

अधिक जानने के लिए हमारे ज्योतिषी से संपर्क करें

कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार एकबार 
माता पार्वती और भगवान शिव नदी के किनारे बैठे हुए थे । तब माता पार्वती को चौपड़
खेल को खेलने की बात कही किन्तु इसमें एक बाधा सामने आयी । कि इस खेल में निर्णायक करने वाला भी तो होना चाहिए तब माता पार्वती और शिव  ने मिलकर मिट्टी से एक बालक बनाया  
और भगवान शिव से इसे जान  फूंक दी  और उस बालक को निर्देश दिया कि वो इस खेल में निर्णायक का कार्य करें । उस बालक ने वैसा ही किया परंतु खेल में माता पार्वती जीत रही थी किन्तु उस बालक ने भूलवश भगवान शिव की विजय की घोषणा कर दी माता पार्वती ने उस बालक को श्राप दे दिया  । कि वो लंगड़ा हो जाए और फिर उसी बालक ने माता से क्षमा याचना की तब माता पार्वती  ने उसे भगवान गणेश की पूजा करने को कहा । 

बालक ने पूरे विधि-विधान से और निष्ठापूर्वक व्रत किया और सच्चे मन से भगवान गणेश की पूजा-अर्चना की। प्रसन्न होकर गणेश जी ने उसकी शिवलोक जाने की इच्छा को पूरा किया। हालांकि, वहां पहुंचकर उन्हें केवल भगवान शिव के ही दर्शन हुए क्योंकि मां पार्वती शिव जी से गुस्सा होकर कैलाश छोड़कर चली गई थीं। बालक से संकष्टी व्रत को जानकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को खुश करने के लिए वो व्रत किया जिसके प्रभाव से पार्वती कैलाश वापस आ गईं ।

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