ब्रह्म मुहर्त में प्रातः चार बजे माँ की प्रथम मंगल आरती की जाती है इसमें माता रानी का स्वरुप बाल अवस्था का होता है। इस आरती से भक्तों को धर्म की प्राप्ति होती है जिससे वह धार्मिक प्रवर्ति का होता है जिससे उसका भविष्य मंगलमय होता है।
मध्यान्ह बारह बजें माँ की द्वितीय आरती की जाती है जिसे राजश्री आरती कहा जाता है। इसमें मातारानी का स्वरुप राज राजेश्वरी युवावस्था का होता है। इस आरती से भक्तों को अर्थ अर्थात समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। जिससे मनुष्य धन -धान्य से परिपूर्ण हो जाता है।
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सायंकाल सात बजे माँ की तृतीया संध्या (छोटी ) आरती होती है जिसमें माता का स्वरुप प्रौढ़ावस्था का होता है। इस आरती में भक्त को संतान तथा वंश वृद्धि की प्राप्ति होती है।
माँ की चतुर्थ शयन (बड़ी) आरती रात्रि साढ़े नौ बजे की जाती है इसमें माता का स्वरुप वैभवपूर्ण एवं वृद्धावस्था का होता है। इस स्वरुप का दर्शन व आरती में शामिल होने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है जो जन्म मरण के बंधनों की मुक्त होकर माँ के श्री चरणों में स्थान प्राप्त करता है।
आरती का समय
प्रातः काल : 04:00 से 05:00 बजे
मध्यान्ह :12:00 से 1:00 बजे
संध्या : 7:00 से 8 :00 बजे
रात्रि : 9:30 से 10:30 बजे
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