अक्षय तृतीया का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस दिन किसी भी व्यक्ति को पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं होती है। व्यक्ति को किसी भी कार्य को पूर्ण करने की इच्छा शक्ति का विकास होता है। मान्यतों के अनुसार इस दिन देवी से व्यक्ति स्वयं या उसके स्वजनों द्वारा की गयी भूल की क्षमा मांगता है तो देवी उसकी प्रार्थना जरूर स्वीकार करती हैं।
अक्षय तृतीया पर देवी विंध्यवासिनी के श्रृंगार पूजा से जीवन की समस्याएं होंगी दूर, मिलेगा धन लाभ का आशीर्वाद : 26-अप्रैल-2020
ब्रह्म मुहर्त में प्रातः चार बजे माँ की प्रथम मंगल आरती की जाती है इसमें माता रानी का स्वरूप बाल अवस्था का होता है। इस आरती से भक्तों को धर्म की प्राप्ति होती है जिससे वह धार्मिक प्रवृत्ति का होता है जिससे उसका भविष्य मंगलमय होता है। उसका कार्य कभी निष्फल नहीं होता। तथा उसके कार्यों में कभी रुकावट भी नहीं आती।
मध्यान्ह बारह बजे माँ की द्वितीय आरती की जाती है जिसे राजश्री आरती कहा जाता है। इसमें मातारानी का स्वरूप राज राजेश्वरी युवावस्था का होता है। इस आरती से भक्तों को अर्थ अर्थात समृद्धि एवं वैभव की प्राप्ति होती है। जिससे मनुष्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है। उसे धन से जुड़ी कभी कोई परेशानी नहीं रहती व उसका वैवाहिक जीवन भी खुशहाल रहता है।
सायंकाल सात बजे माँ की तृतीया संध्या (छोटी ) आरती होती है जिसमें माता का स्वरुप प्रौढ़ावस्था का होता है। इस आरती में भक्त को संतान तथा वंश वृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी विंध्यवासिनी व्यक्ति को उसके संतान का सुखद जीवन काल व आयु वृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करती है।
माँ की चतुर्थ शयन (बड़ी) आरती रात्रि साढ़े नौ बजे की जाती है इसमें माता का स्वरूप वैभवपूर्ण एवं वृद्धावस्था का होता है। इस स्वरूप के दर्शन व आरती में शामिल होने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है जो जन्म मरण के बंधनों से मुक्त होकर माँ के श्री चरणों में स्थान प्राप्त करता है, उसकी सभी सांसारिक इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं व उसे किसी बात का दुःख नहीं रहता।
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