बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास
बद्रीनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर अलग-अलग दंतकथाएं प्रचलित हैं। कहीं जाता जाता है कि गढ़वाल के राजा ने सोलहवीं शताब्दी में मूर्ति को ले जाकर मंदिर में स्थापित कर दिया था। वहीं कहीं कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 8वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य ने कराया था। आदिगुरु शंकराचार्य के मुताबिक इस मंदिर में पूजा करने वाला मुख्य पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य का होना चाहिए।
बद्रीनाथ मंदिर चारो ओर से प्रकृति के अद्भुत व अद्वितीय सौंदर्य से घिरा हुआ है। यदि हम मंदिर के भागों की बात करें तो मंदिर मुख्य तीन भागों में विभाजित है। पहला गर्भगृह, दूसरा दर्शनमण्डप और तीसरा सभामण्डप। इस मंदिर के अंदर 15 मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में मुख्य प्रतिमा के रूप में काले रंग के पत्थर की लगभग 1 मीटर ऊंची विष्णु जी की मूर्ति स्थापित है। बद्रीनाथ मंदिर को 'भूलोक का बैकुंठ' कहा जाता है। यहां प्रसाद के रूप में बन तुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री का भोग लगाया जाता है।
मंदिर की स्थापना से जुड़ी पौराणिक कथा
बद्रीनाथ नामक स्थान भगवान शिव की केदार भूमि के रूप में व्यवस्थित था। उधर देवलोक में भगवान विष्णु पृथ्वी लोक पर ध्यान लगाने हेतु एक स्थान की खोज कर रहे थे और उन्हें शिव का स्थान अत्यधिक मनमोहक लगा इस स्थान के पास से ही अलकनंदा नदी भी प्रवाहित हो रहीं थी। विष्णु जी ने अलकनंदा और ऋषि गङ्गा नदी के संगम के पास एक बालक का रूप धारण किया जोर-जोर से रोने लगे। यह देखकर भगवान शिव और माता पार्वती उनके पास आए और उनसे पूछा कि आपको क्या चाहिए, तो बालक ने उत्तर दिया कि मुझे ध्यान करने के लिए केदार भूमि में थोड़ा सा स्थान चाहिए। इस तरह भगवान विष्णु ने रूप बदलकर केदार भूमि में स्थान प्राप्त किया और इसी स्थान को बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना जाता है।
बद्रीनाथ से जुड़ी हुई अन्य मान्यताएं
जब मां गंगा का धरती पर अवतरित हुई तो वह 12 धाराओं में विभाजित हो गईं और जो धारा बद्रीनाथ में है वह अलकनंदा के नाम से जानी जाती है। इस स्थान को भगवान विष्णु द्वारा अपना निवास स्थान बनाए जाने के कारण इसे बद्रीनाथ कहा जाता है। पहले इस स्थान को बद्री बन भी कहा जाता था क्योंकि यहां बेर के पेड़ों का जंगल था। वेदव्यास जी ने यहीं पास में स्थित एक गुफ़ा में महाभारत ग्रंथ की रचना की थी और पांडवों के अंतिम पड़ाव का स्थान भी यही है।