गुप्त नवरात्रि और आम नवरात्रि में हैं कुछ खास अंतर
आम नवरात्रि में सात्विक और तांत्रिक दोनों तरह की पूजा होती है लेकिन गुप्त नवरात्रि में अधिकतर तांत्रिक पूजा होती है।
ऐसी मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में साधना जितनी गोपनीय रखी जाती है सफलता उतनी अधिक मिलती है।
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गुप्त नवरात्रि में सामान्यत
साधक अपनी साधना को गोपनीय रखता है और इसकी चर्चा केवल अपने गुरु से करता है।
जहां नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है उसी तरह गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की पूजा होती है। इस समय देवी भगवती के भक्त बेहद कड़े नियमों से देवी की आराधना करते हैं। विधिपूर्वक पूजा-अर्चना देवी से आर्शीवाद लेते हैं।
गुप्त नवरात्रि रखें इन बातों का ख्याल
- नवरात्रि शुरु होने से पहले घर और मंदिर को स्वच्छ रखें।
- पूजा की सामग्री को पहले ही घर में रख लें।
- इन दिनों घर आई स्त्री का सम्मान करें ।
- प्याज और लहसुन वाले खाने से दूर रहें।
देवी की आराधना
- गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की अवतार मां ध्रूमावती, मां काली, माता बगलामुखी, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मातंगी तथा कमला देवी की अराधना होती है।
- मंदिर में मां दुर्गा के चित्र को स्थापित करें।
- मंत्र जाप कर छोटी कन्याओं को भोजन कराएं।
गुप्त नवरात्र तांत्रिक साधनाएं करने के लिए जाना जाता है। इस नवरात्रि में विशेष साधक ही आराधना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में की जाने वाली साधना को सबके सामने उजागर न कर गुप्त रखा जाता है। इस साधना से देवी प्रसन्न होती हैं तथा मनचाहा वर देती हैं।
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साधक अर्चना के लिए ये तरीके अपनाएं
तांत्रिक सिद्धियां पाने के लिए यह एक अच्छा अवसर है। इसके लिए किसी सूनसान जगह पर जाकर दस महाविद्याओं की साधना करें। नवरात्रि तक माता के मंत्र का 108 बार जाप भी करें। यही नहीं सिद्धिकुंजिकास्तोत्र का 18 बार पाठ करें।. ब्रम्ह मुहूर्त में श्रीरामरक्षास्तोत्र का पाठ आपको दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त करता है।
जिस प्रकार शिव के दो रूप होते हैं एक शिव तथा दूसरा रूद्र उसी प्रकार भगवती के भी दूर रूप हैं एक काली कुल तथा दूसरा श्री कुल। काली कुल आक्रमकता का प्रतीक होती हैं और श्रीकुल शालीन होती हैं। काली कुल में महाकाली, तारा, छिन्नमस्ता और भुवनेश्वरी हैं। यह स्वभाव से उग्र हैं। श्री कुल की देवियों में महा-त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला हैं। धूमावती को छोड़कर सभी सौंदर्य की प्रतीक हैं।
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