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Amazing Facts: हनुमान जी का एक ऐसा पर्व जिसे महाकाल की नगरी में मनाना है मना। 

Myjyotish Expert Updated 21 Mar 2022 05:09 PM IST
हनुमान जी का एक ऐसा पर्व जिसे महाकाल की नगरी में मनाना है मना। 
हनुमान जी का एक ऐसा पर्व जिसे महाकाल की नगरी में मनाना है मना।  - फोटो : google
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हनुमान जी का एक ऐसा पर्व जिसे महाकाल की नगरी में मनाना है मना। 
 

महाकाल की नगरी को सुरक्षा प्रदान करने मौजूद रहते हैं एक 11 रुद्र अवतार श्री हनुमान

पौष मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हनुमान अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। 

महाकाल की नगरी उज्जैन में हनुमान अष्टमी का पर्व मनाने की विशिष्ट परंपरा रही है। बताया जाता है कि इसके चलते महाकाल की नगरी उज्जैन की चारों दिशाओं की रक्षा करने के लिए हनुमान मंदिरों की स्थापना हुई थी । ऐसे में यूं तो आज यहां कई हनुमान मंदिर हैं, लेकिन कुछ समय पहले तक इसी कार्य के चलते यहां 108 हनुमान मंदिरों की स्थापना की गई थी।

हनुमान अष्टमी के संबंध में स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में उल्लेख भी मिलता है, इसी कारण केवल उज्जैन में ही हनुमान अष्टमी का पर्व मनाए जाने की परंपरा भी रही है।
जानकारों के अनुसार महाकाल की नगरी उज्जैन में पौष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी का दिन हनुमान अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इसी के चलते महाकाल की नगरी में रूद्र स्वरूप में श्री हनुमान जी विराजमान है। बताया जाता है कि मलमास के साथ यह मांस धनु सक्रांति का भी माना गया है, साथी इस पूरे माह सूर्य की साधना का भी विशेष महत्व माना गया है।

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इसी माह में हनुमान अष्टमी भी आती है। महाकाल की नगरी उज्जैन में 108 हनुमान यात्रा का विधान है, जिसे शक्ति का अंश मानकर किया जाता है। माना जाता है कि इसे करने से मानसिक, शारीरिक कष्ट दूर होते हैं। वही इस माह में ऋतु के परिवर्तन की बात भी कही गई है। मान्यताओं के अनुसार इस माह में सूर्य और हनुमान जी की आराधना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। श्री हनुमान जी की चैतन्य मूर्तियों के यूं तो अवंतिका में आने का स्थान है। इनमें हनुमंत के स्वर 84 महादेवों में शामिल माने जाते हैं।

अष्ट धातु की अति प्राचीन पंचमुखी हनुमान प्रतिमा

धर्म की जानकारी व पंडितों के अनुसार बड़े गणेश मंदिर में अष्ट धातु की अति प्राचीन पंचमुखी हनुमान प्रतिमा है। कहा जाता है कि संत जो कि हनुमान जी के परम भक्त थे, बड़े गणेश मंदिर में रहकर एकांत में तांत्रिक साधना किया करते थें। जब उनके दिव्यलोक जाने का समय हुआ तो वह मूर्ति ज्योतिर विद पंडित आनंद शंकर व्यास दादाजी को सौंप गयें।

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उन संत के पास यह प्रतिमा कब से थी या वैसे कहां से लाए थे, यह संबंध में कोई जानकारी नहीं है। बताया जाता है संत ने मूर्ति सोते समय यह भी कहा था कि कोई भी इस प्रतिमा का स्पर्श नहीं करें। इसलिए मंदिर ऐसा बनाया गया कि चारों तरफ जालियां वाले दरवाजे हैं, ताकि भक्त दर्शन तो कर सके, लेकिन मूर्ति को स्पर्श न कर सके। हनुमान स्पीकर यहां भी श्री हनुमान जी का अभिषेक- पूजन और श्रृंगार किया जाता है। इसके साथ ही आरती के पश्चात यह प्रसाद भी बांटा जाता है।


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