नवरात्रि पर कन्या पूजन से होंगी मां प्रसन, करेंगी सभी मनोकामनाएं पूरी
पौराणिक कथाओं अनुसार कात्या ऋषि के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध कात्यायन ऋषि का जन्म हुआ। महर्षि कात्यायन शास्त्रों के बड़े ज्ञानी व बहुत सी विद्याओं के ज्ञाता थे। ऋषि कात्यायन की यह इच्छा थी की देवी स्वयं उनकी पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लें। इस मनोकामना को पूर्ण करने के लिए मन में दृढ़ निष्ठा के साथ महर्षि ने घने जंगलों में कठोर तपस्या की। कात्यायन ऋषि की घोर तपस्या से प्रसन्न हो कर माँ ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर उनके घर पुत्री रूप में जन्म लेने की इच्छा मन ली।
जब कुछ समय बाद महिषासुर नाम का दानव पृथ्वी लोक पर आतंक मचाने लगा तब त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने मिलकर एक तेज शक्ति से देवी को उत्पन्न किया। इस देवी की सबसे पहले पूजा कात्यायन ऋषि ने की थी जिसके बाद उनका कात्यायनी देवी पड़ गया। देवी कात्यायनी ने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लिया और शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथि तक कात्यायन ऋषि की पूजा स्वीकार कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।
देवी कात्यायनी अत्यंत तेजस्वी स्वरूप की देवी हैं। यह चार भुजाओं वाली देवी हैं। उनकी दाहिनी तरफ के हाथों में वरमुद्रा व अभयमुद्रा है तथा उनके बाएं हाथों में कमल तथा तलवार है। सिंह, देवी कात्यायनी का वाहन है। शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार देवी कात्यायनी की उपासना से भक्तों को सरलता से धर्म, अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है। तथा साधक को इस लोक के सभी सुखों को भोगने का अवसर मिलता है। देवी की पूजा से विवाह में आने वाली अड़चने भी दूर हो जाती है एवं विवाह भी शीघ्र ही हो जाता है।
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