भगवान सूर्यदेव एक राशि में एक माह तक रहते हैं। जब वो दूसरे राशि में प्रवेश करते है तो उसे सक्रांति कहते हैं अर्थात भगवान सूर्यदेव का सिंह राशि से कन्या राशि में परवेश करना कन्या संक्रांति कहलाता है l 16 सितंबर दिन बुधवार को सुर्य सिंह राशि से निकल कर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे । इसी लिए इस दिन पुरे देश में कन्या सक्रांति मनाया जाएगा ।
हर साल 12 सक्रांति मनाई जाती है।कन्या सक्रांति भी इनमे से एक है
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कन्या संक्रांति का महत्व
हर संक्रांति का अपना अलग महत्व माना जाता है। इसी प्रकार कन्या संक्रांति का भी अपना विशेष महत्व है। कन्या संक्रांति के दिन भगवान विश्वकर्मा जी की उपासना की जाती है। कन्या संक्रांति पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में विशेष रूप से मनाई जाती है। इस दिन सूर्य देव की पूजा अर्चना की जाती है। संक्रांति के दिन जरूरतमंद लोगों की सहायता की जाती है। सूर्य देव बुध प्रधान कन्या राशि में जाते हैं। इस तरह कन्या राशि में बुध और सूर्य का मिलन होता है। इसे बुधादित्य योग का निर्माण कहा जाता है ।
कन्या सक्रांति के दिन स्नान का महत्व
कन्या सक्रांति के दिन नदी पोखरे या किसी छोटे या बड़े किसी भी जलाशय में स्नान करने का अपना एक अलग महत्व है। शस्त्रों के अनुसार इस दिन नदी या पोखरे में स्नान करने से आत्मा और शरीर के सारे पाप धुल जाते है। इसी लिए इस दिन शुद्ध जल से स्नान करना अपने आप में एक अनुष्ठान है। यदि नदी में स्नान करने का संजोग ना बन रहा हो तो नहाने के पानी में कुछ बूंद गंगा जल मिलना भी लाभप्रद साबित हो सकता है ।
कन्या शक्रांति के दिन दान का महत्व
माना जाता है की दान और पुण्य के लिए कोई खाश दिन नही होता ,अपने सामर्थ्य अनुसार हमे हर दिन दान करना चाहिए । लेकिन कन्या सक्रांति के दिन दान करने का अपना अलग ही महत्व है । इस दिन कई प्रकार के दान पुण्य किए जाते है लेकिन पितरों के लिए किए जाने वाले दान - पुण्य श्रद्धा,पूजा पर खाश ध्यान दिया जाता है। कन्या सक्रांति पितर पक्ष अंतिम तिथि मानी जाती है। दोपहर के समय गाय के गोबर का कांडा जलाया जाता है और इस पर गुड देशी घी डालकर हवन दी जाती है । इस दिन गरीबों को दान का भी खाश महत्व है ।
कन्या सक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का महत्व
कन्या सक्रांति के अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना की जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्मदिन होता है। भगवान विश्वकर्मा को निर्माता माना जाता है। यह मुख्य रूप से दुकान और बड़े और छोटे कारीगरों के द्वारा बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। इस दिन कारखानों और कार्यालयों में मूर्ति स्थापित की जाती ।भगवान विश्वकर्मा की पूजा से कार्यक्षेत्र में वृद्धि होती है । माना जाता है की भगवान विश्वकर्मा की पूजा से धन वैभव की प्राप्ति होती है लोग अपने घरों में लोहे से बनी वस्तुओं जैसे तराजू , गाड़ी, साइकिल इत्यादि को साफ करते है उसे गंगा जल या शुद्ध जल से स्नान करा के उसकी पूजा अर्चना करते है। और भगवान विश्वकर्मा से संपन्नता की कामना करते हैं।कन्या सक्रांति पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्य में विशेष रूप से मनाई जाती है ।
कन्या सक्रांति को खाश बनाने को विधि
सूर्योदय से पहले उठना एक श्रेष्ठ कार्य है लेकिन कन्या सक्रांति के दिन इसे अनिवार्य रूप से पालन करना चाहिए
शास्त्रों के अनुसार कन्या सक्रांति के दिन सबेरे नदी में स्नान करना सबसे पहला कार्य होना चाहीए पवित्र नदियोंe स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है ।
स्नान करते समय स्नान के जल में थोड़ा कला तील डाल ले।
इस दिन उपवास का भी विधि विधान है इस दिन उपवास करके दान पुण्य करना अच्छा माना जाता है ।
स्नान के तुरंत बाद तांबे के लोटे में जल फूल अक्षत गुड हल्दी डाल के सूर्यदेव को चढ़ाना चाहिए
सूर्य को जल चढ़ाते समय इस बात का पुरा ध्यान रखे कि आप सूर्य देव के मंत्र का जप अवश्य करे जो है ॐ सुर्याय नमः
सूर्य देव को जल चढ़ाने के बाद आटा ,तील के लडू ,चावल ,दाल जरूर वितरित करे
शाम में या दोपहर में किस उचित समय भगवान विश्वकर्मा की विशेष पूजा का आयोजन करे ।
कन्या सक्रांति का शुभ मुहूर्त
कन्या संक्रांति बुधवार 16 सितम्बर 2021 को है. कन्या संक्रांति का पूण्य काल दोपहर 12:16 बजे से शुरु होकर शाम 06:25 बजे तक होगा. कन्या संक्रांति की अवधि कुल 06 घंटे 09 मिनट की रहेगी. वहीं, कन्या संक्रांति महा पूण्य काल दोपहर 04:22 बजे से शाम 06:25 बजे तक रहेगा. वहीं कन्या संक्रांति के महा पूण्य काल की कुल अवधि 2 घंटे 03 मिनट रहेगी.
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