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कालाष्टमी 2021 : जानिए कालाष्टमी को मनाए जाने का कारण, महत्व और पूजन विधि

My Jyotish Expert Updated 29 Sep 2021 10:47 AM IST
kalashtami pujan
kalashtami pujan - फोटो : google
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हिंदू पंचांग के हिसाब से, प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी कालाष्टमी कहलाती है। आज आश्विन मास की कालाष्टमी है।अश्विन मास की कालाष्टमी को काल भैरव जयंती भी कहा जाता है। यह तिथि भगवान शिव के ही रौद्र अवतार काल भैरव को समर्पित है। भगवान शिव के भक्त इस दिन भगवान काल भैरव की विधिपूर्वक पूजा करते हैं। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं व भगवान काल भैरव की भक्ति में लीन रहते हैं। मान्यताओं के मुताबिक , अश्विन मास की कालाष्टमी या काल भैरव जयंती पर व्रत रखने से भगवान काल भैरव की कृपा होती हैं। व उनका आशीर्वाद मिलता है। व कालाष्टमी पर भगवान भैरव के साथ- साथ मां दुर्गा की पूजा भी करनी चाहिए। कालाष्टमी पर मां काली की पूजा का महत्व है। शक्ति पूजा से भगवान भैरव की पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान शिव की भी विधि-विधान से अर्चना करें। भगवान शिव के साथ माता पार्वती और भगवान श्रीगणेश की उपासना भी अवश्य करें। भगवान भैरव, भगवान शिव और माता पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। इस दिन भैरव चालीसा का पाठ करना चाहिए। कालाष्टमी के दिन श्वान को भोजन जरूर कराना चाहिए।


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मान्यता है कि भगवान काल भैरव पापियों को दण्डित करने के लिए अपने पास  डंडा रखते हैं व इसे दंडपाणि के नाम से जाना जाता है।

भगवान काल भैरव के बारे में कुछ जानकारी:-

संबंध:- शिव
हथियार:- त्रिशूल व खटवंगा
सवारी:- कुत्ता
पत्नी:-

अष्ट भैरव (भैरव की अभिव्यक्तियां)

•असिथांग भैरव
•रुरु भैरव
•चंदा भैरव
•क्रोध भैरवाल
•उन्मत्त भैरव
•कपाल भैरव
•भीषण भैरव
•समारा भैरव

कालाष्टमी की कथा:-

शिव महा पुराण के हिसाब से, हिभगवान काल भैरव की उत्पत्ति शिव जी के नाखून से हुई थी। कहा जाता है कि एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने अपनी महानता के मुद्दे पर बहस कर रहे थे और दोनों ही एक-दूसरे के वर्चस्व को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे, जिसके चलते बहस गर्मागर्म लड़ाई में बदल गई।उसी दौरान उनके सामने एक विशाल अग्निलिंग प्रकट हुआ और दोनों ने लिंग के सिरों को देखने का प्रयास किया लेकिन देख नहीं सके।और फिर, ब्रह्मा ने अचानक दावा किया कि उन्होंने लिंग के सिरों को देखा।
उस वक्त,भगवान विष्णु के पास अपनी हार स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा, इस बीच, भगवान शिव क्रोधित हुए और दोनों के सामने प्रकट हुए, और वे भगवान ब्रह्मा से झूठ नहीं बोलने के लिए बोले क्योंकि उन्हें कुछ गलत लग रहा था।अपमान सुनकर ब्रह्मा ने नहीं माना कि वो झूठ बोल रहे हैं। जिसके बाद शिव ने काल भैरव का निर्माण किया व निर्माण करके भगवान ब्रह्मा को दंडित किया, जिन्होंने ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया।
तत्पश्यात,भगवान ब्रह्मा ने शिव जी से क्षमा मांगी और भगवान भोलेनाथ ने दया दिखा कर उन्हें क्षमा कर दिया। बाद में भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने अपनी लड़ाई का समाधान निकाला और अपने अपने अहंकार को भी नष्ट किया।

कालाष्टमी की पूजा विधि:-

– इस दिन सूर्योदय से पहले भक्त स्नान कर लें। फिर व्रत कि शुरुवात करें।
– मंदिर में पूजा के पहले देवता काल भैरव की मूर्ति को एक साफ मंच पर स्थापित करें। व मूर्ति के सामने एक दीपक जलाएं।फिर आठ प्रकार के फूल और पत्ते चढ़ाएं।
– फिर 21 बिल्व पत्र (बेलपत्र)पर ॐ नमः शिवाय को चंदन के लेप से लिखकर चढ़ाएं. 
– एक अक्खा(फोड़े बिना) नारियल चढ़ाएं, काले कुत्ते को भैरव का वाहन माना जाता है इसलिए कुत्तों को रोटी खिलाएं.
– और इस दिन कुष्ठरोगियों और भिखारियों के लिए भोजन करवाएं
ये अत्यधिक लाभकारी माना जाता है.
कालाष्टमी पूजा के लिए मंत्र:-

काल बापदुधरनायहैरव मंत्र:

•“ह्रीं वटुकया कुरु कुरु बटुकाया ह्रीं।”
“ओम ह्रीं वं वतुकाया आपादुधरणाय वतुकाया ह्रीं”
“ओम हरां ह्रीं हुं ह्रीं ह्रुं क्षं क्षेत्रपालाय काल भैरवय नमः”

•अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
•ओम भयहरणं च भैरव:।
•ओम कालभैरवाय नम:। 

नोट- यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इनका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। व इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है। 

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