इस कालाष्टमी प्राचीन कालभैरव मंदिर दिल्ली में पूजा और प्रसाद अर्पण से बनेगी बिगड़ी बात : 13-जून-2020
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस भी स्थान पर शक्ति स्वरुप विराजित है , उन सभी स्थानों पर भैरव भी विभिन्न रूपों में शक्ति की रक्षा करने के लिए प्रस्तुत है। माना जाता है बिना भैरव के दर्शन किए शक्ति के स्वरुप की आराधना पूर्ण नहीं होती है। यह वास्तविक रूप में शक्ति एवं शिव के रूपों की उपासना मानी जाती है। कालभैरव भगवान शिव के कोतवाल भी कहे जातें है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कालभैरव को प्रसन्न करने के लिए उन्हें मदिरा का भोग अर्पण किया जाता है। कहा जाता है की इस भोग से प्रसन्न होकर भैरव भक्तों के बिगाड़ें काम भी सवार देतें है। उनकी मनोकामनाओं की पूर्तिकर सुख - समृद्धि से परिपूर्ण करतें है।
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कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा का सबसे श्रेष्ठ समय मध्य रात्रि का माना गया है। परन्तु इस दिन प्रातः काल उठाकर स्नान आदि संपन्न करके कालभैरव की कथा का पाठ करना चाहिए। पूर्ण विधि - विधान से काल भैरव की पूजा को संपन्न करके उन्हें मिष्ठान का भोग अर्पण करना चाहिए। कालभैरव को फल , फूल और मदिरा भी अर्पण करना चाहिए। इस दिन दुर्गा चालीसा का पाठ भी करना चाहिए। इनके आशीर्वाद से व्यक्ति के जीवन की विभिन्न परेशानियों का नाश होता है। यदि कोई भी नकारात्मक शक्ति व्यक्ति के जीवन में सफलता प्राप्ति के बीच बाधा बन रही हो , तो वह भी कालभैरव की कृपा से दूर हो जाती है। कालभैरव को चढ़ाया गया शराब का प्रसाद बहुत हितकारी होता है , क्यूंकि इस प्रसाद से भैरव बहुत जल्दी ही प्रसन्न हो जातें है।
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