इस कालाष्टमी प्राचीन कालभैरव मंदिर दिल्ली में पूजा और प्रसाद अर्पण से बनेगी बिगड़ी बात : 13-जून-2020
पौराणिक कथाओं में सर्वप्रचलित कथा तब की है जब एक बार महादेव के रूप को लेकर ब्रह्मा जी ने आपत्तिजनक बात बोल दी। उनकी बातें सुनकर महादेव बहुत क्रोधित हो उठे थे। उनके क्रोध के तेज से ही कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी। शिव का कालभैरव स्वरुप ब्रह्मा की बात से इतने क्रोधित हो गए थे की अपने नाख़ून को हथियार बनाकर उन्होंने ब्रह्मा जी का मस्तिक्ष ही काट दिया था। उनका क्रोध इस तरह उबाल मार रहा था की उन्हें एहसास ही नहीं हुआ की जाने - अनजाने में उन्होंने ब्रह्म हत्या जैसा पाप अपने सिर पर उठा लिया था। गुस्सा शांत होने पर उन्हें जब अपनी गलती का ज्ञात हुआ तो वह इस पाप से मुक्ति पाने के लिए जगह - जगह भटकने लगे। भ्रमण करतें - करतें उन्होंने एक आकाशवाणी सुनी जहा उनसे कहा गया की उन्होंने ब्रह्म हत्या जैसा पाप किया है।
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इस पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें काशी का कोतवाल बनना पड़ेगा और सदैव दूसरों की गलतियों को क्षमाकर उन्हें सुखद जीवन का आशीर्वाद प्रदान करना होगा। तभी से जो कोई भी कालाष्टमी के दिन कालभैरव की उपासना करता है , उसके सभी कष्ट दूर हो जातें है। गंभीर रोग एवं दुखों का उसके जीवन में कोई स्थान नहीं होता है। कालभैरव की उपासना के साथ ही माँ काली की स्तुति करना बहुत फलदायी माना जाता है। कालभैरव की कृपा से भक्तों के समस्त व्यथा के कारण समाप्त हो जातें है तथा उन्हें सुखद जीवन का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। कालभैरव द्वारा प्रदान किए गए फल के कारण व्यक्ति का जीवन आनंदमय हो जाता है।
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