Kalank Chaturthi
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भाद्रपद माह में आने वाली शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी का समय चंद्र दर्शन के लिए निशेध माना जाता है. मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को भी चतुर्थी चंद्र दर्शन के कारण मणि चोरी का इल्जाम झेलना पड़ा था. इस कारण से इस दिन चंद्रमा को देखना मना होता है. हर साल भाद्रपद माह की चतुर्थी पर गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन पर गणेश पूजन किया जाता है.
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इस दिन किया जाने वाला पूजन व्यक्ति को कई तरह के अशुभ प्रभावों से बचाता है. इस चतुर्थी से ही गणेश उत्सव का भी आरंभ होता है. हिंदू धर्म में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. इस बार गणेश चतुर्थी और कलंक चतुर्थी दो दिन मनाई जाएगी. कलंक चतुर्थी को चौथ चंद्र पर्व के नाम से भी जाना जाता है. कलंक चतुर्थी 18 को मनाई जाएगी और गणेश चतुर्थी 19 को मनाई जाएगी.
कलंक चतुर्थी कब होगी आरंभ
पंचांग के अनुसार इस बार चतुर्थी तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12:40 बजे से आरंभ होने वाली है. चतुर्थी शाम को होने के कारण चतुर्थी का चंद्रमा रात्रि में होगा ऎसे में कलंक चतुर्थी का पर्व 18 सितंबर को मनाया जाएगा. भद्रशूल चतुर्थी तिथि के संयोग से 19 तारीख को चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो जाएगी और दोपहर 1:43 बजे तक रहेगी.
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इसके बाद पंचमी तिथि प्रारंभ होगी. इसके अनुसार दोपहर में चतुर्थी तिथि होने के कारण चतुर्थी व्रत 19 सितंबर को रखा जाएगा. वहीं कलंक चतुर्थी 18 सितंबर को होगी.
श्री कृष्ण पर क्यों लगा कलंक
हिंदू धर्म में भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी यानी गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है. धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि इस रात चांद देखने से भविष्य में झूठा आरोप लगने का डर रहता है. अगर आप इस दोष से बचना चाहते हैं तो आपको चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए. इस दोष का असर भगवान को भी झेलना पड़ कथाओं के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण पर भी मणि चोरी का आरोप और हत्या का दोष लगाया गया था.
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह मणि भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित के पास थी और उन्हें यह मणि भगवान सूर्य ने दी थी. एकाबार सत्राजित के भाई प्रसेन ने उस मणि को पहन लिया कहीं जाते हुए रास्ते में एक शेर ने प्रसेन दोनों को मार दिया और वो मणि लेकर चल गया. प्रसेन जब लौटकर नहीं आता है तो सत्राजित को लगने लगा कि कृष्ण ने ही उसके भाई को मार डाला होगा. तब भगवान श्री कृष्ण को भी स्वयं को निर्दोष साबित करने के लिए उस मणि को खोजा और फिर उन पर से इस दोष का दंश हट पाया.