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कालभैरव की उपासना से होता है शत्रुओं का विनाश

MyJyotish Expert Updated 14 May 2020 05:38 PM IST
Kalabhairava's worship leads to destruction of enemies
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कालभैरव संहार के देव शिव शंकर का स्वरूप है। कालभैरव का शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है काल एवं भैरव अर्थात काल से रक्षा करने वाला। शिव से जुड़ा कालभैरव का स्वरूप विनाशकारी प्रवृत्ति का है। अर्थात यह दानवीय शक्तियों का नाश करता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भैरव को दंडपाणि भी कहा जाता है जिसका अर्थ है पापियों को दंड देने वाला। उनकी सवारी कुत्ता है। प्रतिमाह कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालभैरव की पूजा अर्चना की जाती है। कालभैरव की आराधना एवं व्रत व उपवास से उपासक की समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।



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कालिका पुराण के अनुसार कालभैरव को महादेव का गण बताया गया है। इस दिन कालभैरव के साथ माँ दुर्गा की उपासना भी साधकों के लिए अत्यंत ही फलदायी प्रमाणित होती है। इनकी आराधना से जीवन में आ रही समस्त परेशानियों का समापन होता है। दुःख और दरिद्रता का व्यक्ति के जीवन में कोई वास नहीं रहता। कालभैरव की उपासना से प्राप्त की शक्ति से व्यक्ति के मन का भय समाप्त हो जाता है तथा वह निर्भयता से अपने कार्य को सफल बनाता है। कालभैरव दुष्टों का नाश करते हैं परन्तु अपने भक्तों के लिए उनकी कृपा कल्याणकारी मानी जाती है।

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कालाष्टमी के शुभ दिन पर, कालभैरव के भक्त जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान भैरव की पूजा करते हैं। मंदिरों में शिव कथा सुनाई जाती है और भगवान भैरव के नाम से श्लोकों और मंत्रों का पाठ किया जाता है। काल भैरव की पूजा-विधान और पारंपरिक अनुष्ठान की शुरुआत उन्हें फल, फूल और मदिरा भेंट करके की जाती है। कालभैरव शत्रु नाशक हैं, उनके प्रकोप से किसी भी प्रकार की दानवीय शक्ति उनके भक्तों को हानि नहीं पंहुचा सकती। कालभैरव शिव स्वरूप हैं इसलिए अपने भक्तों से शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।

इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा भगवान शिव और माता पार्वती के पाठ कीर्तन व कथाओं का भी प्रचलन है। कालभैरव की पूजा रात्रि के समय करने की अधिक मान्यता है। मान्यताओं के अनुसार रात्रि काल में संपन्न की गई पूजा का फल शुभ प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से रचनात्मक ऊर्जा में सुधार होता है तथा सफलता प्राप्त होती है।

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