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काल भैरव रहस्य : क्या काल भैरव की मूर्ति सच में करती है मदिरा का सेवन ?

Myjyotish expert Updated 21 May 2021 01:36 PM IST
Astrology
Astrology - फोटो : Google
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हिंदु धर्म में भगवान की प्रतिमाओं का पूजन होता है। भक्तजन मन और श्रद्धा से मूर्तियों की आराधना करके प्रेम व्यक्त करते हैं। भारत के कई हिस्सों में बहुत से ऐसे मंदिर भी मौजूद हैं जो विचित्र और अद्भुत हैं। आपको हैरानी होगी ये जानकर की मध्य प्रदेश के उज्जैन में भगवान काल भैरव का ऐसा रहस्यमय मंदिर हैं, जहां श्रद्धालु न केवल भगवान को मदीरा अर्पित करते हैं बल्कि काल भैरव भगवान की मूर्ति उस मदीरा का चढ़ावा स्वीकार करके सेवन भी करती है।
महाकाल की नगरी उज्जैन को मंदिरों का नगर कहा जाता है। शिप्रा नदी के किनारे स्थित बाबा महाकाल के मंदिर से लगभग पांच किलोमिटर की दूरी पर है लगभग 6000 साल पुराना अनुठा काल भैरव मंदिर। काल भैरव का यह मंदिर एक वाम मार्गी तांत्रिक मंदिर हैं। अर्थात वाम मार्गी मंदिरों में मांस, मदीरा, बलि जैसा चढ़ावा और प्रसाद चढ़ाया जाता है। काल भैरव का यह मंदिर हिंदू श्मशान घाट के ठीक बीचो बीच स्थित है। 

अब सबसे बड़ा सवाल और आश्चर्य की बात यही हैं कि कैसे कोई मूर्ति किसी खाने-पीने के पदार्थ का सेवन कर सकती हैं पंरतु इस बात का यही जवाब हो सकता हैं कि जहा श्रद्धा होती है, वहा शक और सवाल की गुंजाइश नहीं होती हैं।

कैसे पिलाई जाती हैं भैरव बाबा को मदिरा ?

भैरव बाबा के मंदिर में होने वाली ये तांत्रिक क्रिया या आसान शब्दों में कहा जाए तो मदिरापान सिर्फ वहा के पूजारी ही करवा सकते हैं। सबसे पहले वे भैरव की मूर्ति के पास बैठकर मंत्रों का उच्चारण करते हैं फिर छोटी सी प्याली में मदीरा डालकर बाबा के मुख से लगा देते हैं आश्चर्य की बात ये है कि दो मिनट के भीतर पूरी प्याली साफ हो जाती हैं। मगर यह भी कहा जाता हैं कि मूर्ति के मुख में कोई छेद नहीं हैं। यह एक रहस्य बना हुआ हैं कि मदीरा आखिर जाती कहा हैं। 

अंग्रज़ों ने करवाई थी खुदाई

ब्रिटिश शासन के दौरान एक अंग्रेज़ अफसर ने मंदिर की अच्छी खासी जांच करवाई थी। कहा जाता हैं कि काल भैरव के इसी मंदिर में सभाग्रह के उत्तर की ओर पाताल भैरवी नाम की गुफा भी हैं। संदेह था की कही चढ़ाई गई मदिरा इस गुफा के रास्ते ज़मीन में तो नहीं जा रही है। इसलिए उन्होने प्रतिमा के आसपास की जगहों की तल तक खुदाई भी करवाई, मगर कुछ हाथ नहीं लगा और आज तक यह बात रहस्यमय हैं कि आखिर प्रसाद के रुप में चढ़ाई हुई मदिरा जाती कहा हैं।

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कई लोगो ने की इस रहस्य की जांच

काल भैरव के मदिरापान करने के पीछे की इस पहेली को आज तक कोई नहीं सुलझा पाया हैं हालांकि कई लोग आए और मामले की तफतीश की। कई लोगो ने ये साझा किया की जिस पोरस पत्थर के इस्तमाल से प्रतिमा बनी हैं उसकी प्रकृति में मदिरा को सोखने की शक्ति मौजूद हैं। मगर इस बात को भी नकार दिया गया क्योकि किसी भी पत्थर में इतने हज़ार सालों की मदिरा सोखने की क्षमता होना असंभव हैं। 

दूसरा यह सिद्धांत साझा किया गया कि मदिरा वातावरण में भांप बनकर वातावरण में मिल जाती होगी। मगर अंत में जाकर इस तर्क को भी नकार दिया गया क्योकि किसी भी पदार्थ को भांप बनकर उड़ने में वक्त लगता हैं मगर जिस गति से भैरव की प्रतिमा मदिरा का सेवन करती हैं उसमें ज़रा भी वक्त नहीं लगता। 

अंत में जाकर हर कोई इसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि हो न हो भगवान काल भैरव ही आकर मदिरापान करते हैं और क्षद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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