गायत्री जयंती पूजन से मिलेगा सुख समृद्धि का वरदान
ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष को गायत्री जयंती का पर्व भी मनाया जाता है इस वर्ष 11 जून को गायत्री जयंती मनाई जाएगी. देवी गायत्री जी महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के दिव्य सार का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा तीनों देवी-देवताओं की संयुक्त शक्ति का प्रतिनिधित्व भी इनमें निहित दिखाई देता है. हिंदू धर्म में देवी गायत्री को शक्ति एवं ज्ञान के स्वरुप रुप में पूजा जाता है. जिस प्रकार ज्ञान स्वरुप सरस्वती जी का पूजन होता है उसी अनुरुप देवी गायत्री भी ज्ञान को तृप्त करने वाली होती हैं.
वैदिक साहित्य के अनुसार, उन्हें सूर्य के प्रकाश के स्त्री रूप के रूप में चित्रित किया जाता है. जीवन एवं सृष्टि में प्रकाश ही उस ज्ञान को दर्शाता है जो आत्मा को प्रबुद्ध करने वाला होता है. गायत्री जी का गायत्री मंत्र गायत्री माता के रूप का गुणगान करता है. गायत्री मंत्र एक मूल मंत्र या कहें हिंदू धर्म में सबसे बुनियादी मंत्र भी माना जाता है जो यह भक्त को सनातन धर्म को आत्मसात करने और उसका पालन करने में सहायक बनता है. जीवन को आदर्श स्वरुप जीने की ओर ले जाता है.
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देवी गायत्री की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी गायत्री को देवी सरस्वती का एक रूप माना जाता है और वह भगवान ब्रह्मा की पत्नी हैं. कहानी के अनुसार, ब्रह्मा एक बार एक अनुष्ठान कर रहे थे जिसके लिए उनकी पत्नी देवी सरस्वती की उपस्थिति की आवश्यकता थी. देवी सरस्वती किसी कारण से देरी से आईं और समय पर नहीं आ सकीं, इससे ब्रह्मा क्रोधित हो उठे. उसने पुजारियों से कहा कि वह उसे किसी भी उपलब्ध महिला से शादी करे, ताकि वह अपनी पत्नी के रूप में अनुष्ठान के माध्यम से बैठ सके.
पुजारियों ने एक ऐसी महिला की तलाश की जो सरस्वती देवी का स्थान ले सके और उन्हें एक सुंदर चरवाहा गायत्री देवी मिली, ब्रह्मा का उससे विवाह हुआ और अनुष्ठान पूरा हुआ। ऐसा माना जाता है कि चरवाहा देवी सरस्वती का अवतार थीं . साथ ही मान्यता है है कि ब्रह्मा की पत्नी के रूप में गायत्री देवी ने उन्हें चारों वेदों के साथ प्रस्तुत किया था, इसलिए गायत्री देवी को वेद माता के नाम से जाना जाता है. वह कारीगरों, कवियों और संगीतकारों की संरक्षक भी होती हैं.
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देवी गायत्री स्वरुप
देवी गायत्री के पांच सिर दिखाए गए हैं, इनका प्रत्येक सिर एक पंच वायु या पंच प्राण का प्रतिनिधित्व करता है. समाना, उदान, प्राण, अपान और व्यान का. वैकल्पिक रूप से, उन्हें पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा जाता है पृथ्वी, वायु, जल, आकाश और अग्नि.अपने दस हाथों में, वह एक शंख, चक्र, वरद, कमला, काश, अभय मुद्रा, अंकुश और रुद्राक्ष माला धारण करती है.
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥
हिंदू धर्म में गायत्री मंत्र से ज्यादा लोकप्रिय कोई दूसरा मंत्र नहीं है. यह मूल मंत्रों में से एक है जिसका जप एक अशिक्षित भक्त भी कर सकता है. गायत्री मंत्र का जाप करने से पहले व्यक्ति को धार्मिक अनुष्ठानों के बुनियादी ज्ञान की आवश्यकता होती है, सभी पापों और कष्टों से मुक्ति पाने वाले इस मंत्र का नियमित जाप अत्यंत शुभदायक होता है.