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जीवित्पुत्रिका पूजा विधि
इस व्रत के एक दिन पहले महिलाएं सुबह जल्दी उठ कर नहा कर पूजा करती है पूजा करने के बाद महिलाएं भोजन करती हैं। इसके बाद वर्ष के पूरा होने तक महिलाएं बिना कुछ खाए पिए रहती हैं व्रत पूरा होने के बाद ही अन्न को ग्रहण करेंगी। जितिया व्रत में व्रती महिलाएं पूरे दिन का निर्जला व्रत रखती हैं। पारण वाले दिन पर सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं कुछ खाती हैं। जितिया व्रत वाले दिन पर कुछ खास बनाती है जैसे कि झोर भात, भरुवा की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जितिया व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक कथाओं के अनुसार महाभारत के युद्ध में अपने पिता की मौत का बदला लेने की भावना से अश्वत्थामा पांडवों के शिविर में घुस गया। पौराणिक कहानी के अनुसार में शिविर के अंदर पांच लोग सो रहे थे। और वह द्रोपति की संताने थी और द्रोपति की पांचों संतानों को अश्वत्थामा ने उन्हें पांडव समझकर मार दिया, जिसके बाद क्रोध में आकर अुर्जन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उसके बाद उन्होंने अश्वत्थामा की दिव्य मणि ले ली।
बदले की भावना से अश्वत्थामा ने फिर से बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चें को मारने का प्रयास किया और उसने ब्रह्मास्त्र से उत्तरा के गर्भ को नष्ट कर दिया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को फिर से जीवित कर दिया। गर्भ में मरने के बाद जीवित होने के कारण उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। तब उस समय से ही संतान की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखा जाने लगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत की अलग बात
यह व्रत अन्य व्रतों से थोड़ा अलग और कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। इस व्रत को संतान सुख के लिए रखा जाता है और इस व्रत को रखने के लिए हर मां को 3 दिन के उपवास रखना होता है। पहले दिन नहाया - खाया जाता है, दूसरे दिन जितिया निर्जला व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन इसका समापन करने के लिए पारण की विधि की जाती है। ये व्रत उन सभी मांओं की झोली संतान की किलकारियों की खुशियों से भर देता है जो पूरे मन और आत्मा से जितिया माता की पूजा करती हैं और इस व्रत को पूरी लगन से रखती हैं।
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