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जानिए इस साल कब मनाया जाएगा जीवित्पुत्रिका पर्व, पूजा विधि, महत्व व कथा

My jyotish expert Updated 30 Aug 2021 10:43 AM IST
जीवित्पुत्रिका व्रत 2021
जीवित्पुत्रिका व्रत 2021 - फोटो : Google
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हिंदू धर्म में कई त्योहार ऐसे होते हैं जिन्हें बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है । इन्हीं त्योहारों की लंबी सूची में से एक त्योहार होता है जीउतिया का त्योहार । हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष ही आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया त्योहार का व्रत रखा जाता है । इस व्रत को सुहागन स्त्रियों के द्वारा पूर्ण किया जाता है और इस त्योहार को मुख्य रूप से संतान के हित की प्रार्थना के लिए किया जाता है । शास्त्रों में ऐसा माना जाता है कि जितिया त्यौहार का व्रत करने से संतान की उम्र लंबी हो जाती है । कई जगहों पर यह मान्यता बताई जाती है की पुत्र के लिए जीउतियि का पर्व उठाया जाता है लेकिन अधिकतर जगहों पर पुत्र और पुत्री दोनों के लिए ही यह पर्व मनाया जाता है । कहीं जगहो पर ऐसी कई महिलाएं हैं जिनके बेटे नहीं होते लेकिन वह अपनी बेटियों के लिए जीउतिया का व्रत रखती है । इस पर्व में जितिया गुंधवाने के साथ - साथ मडुआ का अट्टा , नोनी साग , सतपुतिया , झींगी , कांदा , मकई , व खीरा जैसी चीजों का काफी महत्व होता है । इस साल जितिया व्रत का त्यौहार 28 सितंबर से लेकर 30 सितंबर तक मनाया जा रहा हैं । इस व्रत को जीवित्पुत्रिका और जितिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है ।

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इस पर्व के व्रत को माना जाता है कठिन व्रतों में से एक : -
तीन दिनों तक चलने वाले इस व्रत को ज्योतिषाचार्य सबसे कठिन व्रतों में से एक बताया करते हैं । इस दिन सुहागन स्त्रियां अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना करते हुए निर्जला व्रत को सफलतापूर्वक पूर्ण करती है । इस व्रत के दौरान सप्तमी तिथि के दिन महिलाएं नहाए और खाए करती हैं , वही अष्टमी के दिन महिलाएं जितिया का व्रत और नवमी वाले दिन महिलाएं अपने निर्जल व्रत को खोलती हैं यानी कि पारण किया जाता है । विशेष रुप से ग्रंथों में यह बताया गया है कि सप्तमी वाले दिन महिलाएं सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाया - पिया करती और घर में प्याज और लहसुन से बनने वाली सब्जियां भी नहीं बना करती हैं ।

इस व्रत का महत्व : -
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का महत्व महाभारत के काल से ही जुड़ा हुआ है । कहा जाता है कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडवों पुत्र की रक्षा करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उन्हें पुनर्जीवित किया था । तभी से इस व्रत का प्रचलन चलता चला आ रहा है । कहते हैं कि इस व्रत को करने से भगवान श्री कृष्ण शादी - शुदा महिलाओं के संतानों की रक्षा किया करते हैं ।

क्या है इस व्रत की पौराणिक कथा : -
धार्मिक कथाओं के मुताबिक बताया जाता है की एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहा करती थी । उसी पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहा करती थी । दोनों ही बड़ी पक्की सहेलियां थी । दोनों ने एक दिन कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत को पूर्ण करने का प्रण लिया ।

लेकिन जिस दिन उन दोनों को व्रत रखना था उसी दिन शहर के बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसके दाह संस्कार में सियारिन को बड़ी जोरों से भूख लगने लगी । मुर्दा को देखकर वह खुद को रोक नहीं पाई और उसका जितिया का व्रत टूट गया । परंतु सील ने खुद पर संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन के व्रत का पारण किया ।

दूसरे दिन दोनों सहेलियों ने एक ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में जन्म लिया । उस लड़की के पिता का नाम भास्कर था । चील बड़ी बहन और सियारिन छोटी बहन के रूप में उस घर में जन्मी । चील का नाम शीलवती रखा गया और शीलवती के शादी बुद्धिसेन के साथ तय हो गई और जबकि सियारिन का नाम कपुरावती रखा गया और उसकी शादी उस नगर के राजा मलायकेतु के साथ तय हो गई ।

भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए थे लेकिन कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाया करते थे। कुछ समय बाद ही शीलवती के सातों पुत्र बड़े होकर राजा के दरबार में काम करने लगे ।  कपुरावती के मन में उन्हें देखकर। की भावना पैदा हो गई और उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर कटवा दिए ।

इसके बाद सात नए बर्तन मंगवाकर उनका सर लाल कपड़े से ढककर बर्तन में रख शीलवती के घर भिजवा दिए । यह सब देख कर भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों केसर बनाकर उसे उनके धड़ से जोड़ दिया फिर इसके बाद उस पर अमृत का छिड़काव कर दिया । जिससे उनमें जान आ गई ।

कुछ समय पश्चात सातों पुत्र फिर से जिंदा हो गए और घर लौट आए । जो कटे सिर रानी ने भिजवाए थे वह फल बन गए । दूसरी ओर रानी कपूरावती बुद्धिसेन के घर की सूचना सुनने के लिए व्याकुल हो रही थी । काफी देर तक जब सूचना नहीं मिली तो कपूरावती स्वयं ही बड़ी बहन के घर गई और वहां सभी पुत्रों को जिंदा देखकर चौक गई । इसके बाद कपुरावती ने अपनी बड़ी बहन को सारी बातें बताई और बाद में अपनी गलती का पछतावा भी किया । भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सभी पुत्र जिंदा हो गए । शीलवती कपूरावती को उसी पाकड़ के पेड़ के पास लेकर गए और सारी बातें बताएं । जिसके बाद कपूर आवती बेहोश हो गई और वहीं पर मर गई । जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्होंने उसी पाकड़ के पेड़ के नीचे कपूरावती का दाह संस्कार कर दिया ।  

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