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Krishna Janmashtami 2020 Puja: कृष्ण पूजन में क्यों आवश्यक है तुलसी का पत्ता, जाने रहस्य

Myjyotish Expert Updated 09 Aug 2020 11:55 AM IST
कृष्ण पूजन : तुलसी का पत्ता
कृष्ण पूजन : तुलसी का पत्ता - फोटो : Myjyotish
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Janamashtami 2020 : कृष्णा द्वारकाधीश के रूप में जाने जातें है। उन्होंने अपने राज्य काल के समय सौराष्ट्र में द्वारका नामक शहर का निर्माण किया था जो आज के अवशेषों के साथ जल के निचे समा चूका है। वह भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। भगवान विष्णु ने समय - समय पर धरती पर अवतार लिए है। उनके सभी अवतार धर्म हित के लिए हुए है। संसार में जब भी अधर्म का बोल बढ़ा है ,भगवान विष्णु ने अपने अवतारों के माध्यम से उसका नाशकर धर्म की स्थापना की है। श्री कृष्ण को बचपन से ही दूध ,दही , माखन, घी इतियादी से बनी चीज़ों से बहुत प्रेम था। वह इनका सेवन न केवल अपने घर पर करते बल्कि अन्य घरों में जाकर भी इन्हे चुराकर खाया करते थे। जिस कारण वश उन्हें उनकी माता यशोदा द्वारा दण्डित भी किया जाता था।

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कृष्ण माता यशोदा एवं पिता नन्द उनके कर्म के माता पिता थे अर्थात वह जिन्होंने उनका लालन -पालन किया था। और वासुदेव और जानकी उनके जन्म माता पिता थे अर्थात जिन्होंने श्री कृष्ण को जन्म दिया था। कृष्ण का जन्म अपने मामा के राज्य में कारावास के भीतर हुआ था। वह अपने माता पिता की आठवीं संतान थे जो मामा कंस द्वारा फ़ैलाई प्रताड़ना एवं अत्याचारों का अंत करने धरती पर पधारे थे। श्री कृष्ण को लीलाधर के नाम से भी जाना जाता है। मान्यताओं के अनुसार श्री कृष्ण आज भी वृंदावन के एक मंदिर में रात्रि के समय रास रचाने धरती पर आते है।

श्री कृष्ण को बालावस्था से ही खान -पान का बहुत शौक था। जिस कारण उनकी माता उन्हें विभिन्न प्रकार के पकवान बनाकर खिलाया करती थी। उन्हें छप्पन भोग का प्रसाद आज भी मंदिरों व घरों में चढ़ाया जाता है। श्री कृष्ण की आराधना के समय पंजीरी भोग का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है। माना जाता है की कफ के दोषों से छुटकारा पाने के लिए पंजीरी का भोग श्री कृष्ण को लगाना लाभदायक प्रमाणित होता है। इन पकवानों में नमकीन ,मिठाई ,अन्न ,फल और सरबतों को मिलाकर भोग की थाली अनेकों पकवानों के साथ सजाई जाती है। भोग से श्री कृष्ण प्रसन्न होते है तथा भक्तों को इच्छाओं की पूर्ति करते है।

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कृष्ण पूजन में तुलसी के पत्तें का बहुत ही अहम स्थान होता है। माना जाता है की राक्षसों के साथ एक युद्ध के समय जलंधर नाम के एक असुर का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी सर्वश्रेष्ठ भक्त के साथ छल किया था।  जो की जलंधर की पत्नी भी थी , उसी दिन उस पतिव्रता स्त्री के श्राप से मुक्ति पाने हेतु विष्णु जी ने वृंदा को आशीर्वाद दिया था की जिस किसी रूप में जब भी उनकी आराधना की जाएगी। उसी समय वृंदा जो की तुलसी के पौधे में परिवर्तित हो गयी थी उनका उपयोग अनिवार्य होगा। और जो कोई ऐसा नहीं करेगा उसकी कामनाएं अधूरी ही रह जाएंगी। तभी से भगवान विष्णु के सभी रूपों की आराधना के समय तुलसी के पत्तों का उपयोग जरुरी माना गया है।
 

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