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वहीं से शुरू हुआ और आगे चलते चलते वैवाहिक औरतें अपने पति को और तो और मां अपने बेटे को या भाई अपनी बहनों को प्यार जताने के लिए यह त्यौहार मनाते थे और तभी से इस त्यौहार को प्यार का प्रतीक त्योहार के नाम से जाना जाता है पर यह त्यौहार बहनों के लिए बहुत खास माना जाता है चाहे वह दवा ही मानते हैं कि क्यों ना हो वह अपने भाई को अपने घर बुलाकर उसे जरूर राखी बांधी है और भाई अपनी बहन को प्यार के नाम भी उपहार देता है और उसी तरह बहन अपने भाई को राखी बांधी है और इस त्यौहार का समापन होता है.
के धागे की राखी तो अब बांधी जाती है पर क्या आप यह जानते हैं कि पहले कैसे हो और क्या माना जाता था. पहले एक सूत का धागा होता था जो बहन अपने भाई की कलाई में बांधती थी फिर धीरे धीरे चलते चलते मैं भागा एक ही नाडा के रूप में बदलाव और नाडा बांधने लग गए और फिर उसके बाद ही पक्के भागों का इस्तेमाल कर आ गया और उसमें अच्छे अच्छे सुंदर फूल चिपकाकर उसे राखी के रूप में जाना जाता है अब तो राखी के भी कई रूप आने लगे हैं चाहे वह सस्ती हो या महंगी से महंगी राखी क्यों ना हो वह एक रंगीन कलावा हो या एक अच्छे धागे से बंद कर राखी बनाते हैं और तो और अब सोने और चांदी की भी राखी बनने लगी है.
ऐसा कहा जाता है कि जब देव और असुरों की लड़ाई होती थी तब असुर देवो पर भारी पड़ने लग गए थे तब भी जब देव राय हारने लग गए हो देवेंद्र इंद्र घबरा गए और महर्षि बृहस्पति के पास तुरंत चले गए और सभी बृहस्पति ने सुझाव दीया और इंद्राणी यानी इंद्र की जो तस्वीर है उन्होंने धागा लेकर अपनी शक्ति का मंत्र करते हुए अपने पति के हाथ पर बांध दिया और वह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था इसीलिए कहा जाता है कि तब से ही पत्नियां अपने पति को राखी बांधने लगी.
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इसके अलावा यह भी माना जाता है कि सिरोही की रक्षा भी एक बार श्री कृष्ण ने करी थी और वह भी इस त्यौहार से कुछ जुड़ा है. एक बार श्री कृष्ण भगवान को हाथ में बहुत ज्यादा चोट लग गई थी कि उनके हाथ पर खून बह रहा था और जब द्रोपती ने उन्हें देखा तो उनसे देखा नहीं जा रहा था उन्होंने एकदम से अपनी साड़ी का पल्लू पाड़ा और भगवान श्री कृष्ण के हाथ में कसकर बांध दिया ताकि खून बहना बंद हो जाए थोड़ी देर रुक कर जब द्रोपदी ने चीर हरण किया तभी भगवान श्री कृष्ण ने तीर को बढ़ाकर इस बंधन के नाते दो उनका उपकार चुकाया और तभी से यह एक रक्षा का बंधन मानते हुए रक्षाबंधन माना जाता है .
यैं बद्धो बलि राजा दान्वेंद्रो महाबालह तें त्वा अभीबंधामि रक्षे मा चल मा चल! यह मंत्र पढ़ना जरूरी है जब भी आप अपने भाई को राखी बांध रही हो तो और अगर कोई भी शिष्य अपने गुरु को बांध रही है तो वह इस मंत्र का प्रयास करें यें बद्धो बलि राजा दान्वेंद्रो महाबालह तें त्वा रक्शबंधमि रक्षे मा चल मा चल!
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साथ ही साथ यह भी कहा गया है जब भगवान कृष्ण के पास युधिस्टर आए और उनसे पूछा कि भगवान मैं कैसे हर संकटों से दूर हो सकता हूं कैसे मेरी परेशानियों का हल निकल सकता है तो उनकी बात सुनकर श्री कृष्ण ने उनको बोला कि राखी का त्यौहार रक्षा के लिए जरूर मनाओ.
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