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गणेश जी के पिता एवं माता: भगवान शिव और माता पार्वती
भगवान गजानन का जन्म :
ऐसी मान्यता हैं कि भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के द्वारा उनकी शक्तियों से हुआ था I पुराणों में ऐसा वर्णित हैं कि माता पार्वती ने अपनी सखी के कहने पर अपने उबटन से एक बालक का निर्माण किया फिर उसमें प्राण डाल दिए I जिसे गणेश का नाम दिया गया I
जन्म समय : भादो मास की चतुर्थी तिथि
शास्त्रों के विद्वानों के मुताबिक गजानन का जन्म
अनुमानत: 9938 विक्रम संवत पूर्व भाद्रपद माह की शुक्ल चतुर्थी तिथि को मध्याह्न के समय काल में हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म सतुयग में हुआ था।
स्थान : कैलाश मानसरोवार
भाई : श्री कार्तिकेय (बड़े भाई)
गणेशजी की पत्नियां : ऋद्धि और सिद्धि।
पुत्र : क्षेत्र (शुभ) और लाभ।
पौत्र : आमोद और प्रमोद।
ससुर : भगवान विश्वकर्मा
अधिपति : जल तत्व के अधिपति।
प्रिय पुष्प : लाल रंग के फूल।
प्रिय वस्तु : दुर्वा (दूब), शमी-पत्र।
प्रमुख अस्त्र : पाश और अंकुश।
श्री गणेश की सवारी: मूषक
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गणेश जी का मस्तक : गणेश जी के मस्तक से संबंधित ऐसी पौराणिक कथा हैं कि एक बार गजानन को माता पार्वती ने द्वारपाल बनकर यह ध्यान रखने को कहा था कि कोई भी द्वार के भीतर प्रवेश ना कर पाए, aise में अपनी माँ की आज्ञा मानकर उन्होंने भगवान भोलेनाथ को भी प्रवेश नहीं करने दिया I परिणाम स्वरूप गणेश को भगवान शिव का क्रोध झेलना पड़ा और भगवान शिव ने गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन बाद में शिव जी ने हाथी का सिर लगा कर उन्हें पुनर्जीवित किया I तब से गणेश भगवान का मुख हाथी के समान है I
गणपति की तरह अग्र पूजक कैसे बनें
: एक बार देवताओं में धरती की परिक्रमा की प्रतियोगिता हुई जिसमें जो सबसे पहले परिक्रमा करके आ जाता उसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता। प्रतियोगिता प्रारंभ हुई परंतु गणेश जी का वाहन तो मूषक था तब उन्होंने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया और उन्होंने अपने माता पिता शिव एवं पार्वती की ही परिक्रमा कर ली। ऐसा करके उन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की ही परिक्रमा कर ली। तब सभी देवों की सर्वसम्मति और ब्रह्माजी की अनुशंसा से उन्हें अग्रपूजक माना गया। इसके पीछे और भी कथाएं हैं। पंच देवोपासना में भगवान गणपति मुख्य हैं।
गणेशजी की पसंद :
भगवान विनायक को उनका प्रिय मिष्ठान मोदक {Modak} अति प्रिय हैं I उन्हें लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं I इसके साथ ही केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा भी इन्हें पसन्द हैं, इसलिए यह सभी वस्तुएं उन्हें अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है।
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