विवाह से पूर्व कुंडली मिलान करना अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि कुंडली मिलान भावी दूल्हा-दुल्हन की अनुकूलता और उनके सुखी व समृद्ध भविष्य को जानने का एक सटीक साधन है। शादी की चाह रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए एक अच्छा जीवनसाथी चाहता है। परंतु कई बार ऐसा देखने में आता है कि शादी के बाद पति-पत्नी के बीच रिश्ते बिगड़ जाते हैं। दोनों के विचार अलग-अलग होने के कारण मतभेद की स्थिति बनती है| और बाद में यह सब उनके बिछड़ने का कारण बन जाते हैं। शादी के बाद वर-वधु का जीवन सुखी रहे इसलिए कुंडली के माध्यम से दोनों के गुण दोषों का मिलान किया जाता है।
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कुंडली में केवल गुण मिलान करके विवाह करना उचित नहीं है | व्यवहारिक रूप में गुण मिलान की यह विधि अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा सिर्फ इसी विधि के आधार पर कुंडलियों का मिलान सुनिश्चित कर देना उचित नहीं है। इस विधि के अनुसार वर-वधू की कुंडलियों में नवग्रहों में से सिर्फ चन्द्रमा की स्थिति ही देखी जाती है तथा बाकी के आठ ग्रहों के बारे में बिल्कुल भी विचार नहीं किया जाता जो किसी भी पक्ष से व्यवहारिक नहीं है क्योंकि नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह का अपना महत्त्व है तथा किसी भी एक ग्रह के आधार पर इतना महत्त्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जा सकता। इसलिए सभी ग्रहों का आंकलन करना अत्यंत आवश्यक है|
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विवाह से पूर्व कुंडली मिलान या गुण मिलान को अष्टकूट मिलान कहते हैं। इसमें वर एवं कन्या के जन्मकालीन ग्रहों तथा नक्षत्रों में परस्पर साम्यता, मित्रता तथा संबंध पर विचार किया जाता है। शास्त्रों में मेलापक के दो भेद बताए गए हैं। एक ग्रह मेलापक तथा दूसरा नक्षत्र मेलापक होता है । इन दोनों के आधार पर वर एवं कन्या की शिक्षा, चरित्र, भाग्य, आयु तथा प्रजनन क्षमता का आकलन किया जाता है। कुंडली मिलान करने में सबसे पहला कार्य गुण मिलान का होता है। किसी भी कुंडली में आठ तरह के गुणों अर्थात अष्टकूट का मिलान किया जाता है। शादी में गुणों का मिलान बेहद जरुरी होता है। यह गुण है – वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री गण, भकूट और नाड़ी। इन सब के मिलान के पश्चात कुल 36 अंक होते है, विवाह के समय यदि लड़का-लड़की दोनों की कुंडली में 36 में से 18 या इससे ऊपर गुण मिल जाते हैं, तो यह माना जाता है कि विवाह सफल रहेगा, यदि 18 से कम गुण मिलते हैं तो विद्वान ज्योतिषियों द्वारा विवाह न करने का ही निर्देश दिया जाता है|
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