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वैदिक ज्योतिष के अनुसार जन्म कुंडली के लग्न,तृतीय, चतुर्थ, पंचम ,नवम एवं ग्यारवें भाव से किया जाता है । प्राथमिक शिक्षा का प्रतिनिधित्व चतुर्थ भाव तथा उच्च शिक्षा नवम भाव दर्शाती है । जबकि तृतीय भाव साहस, विश्वास, यदाश्त, लिखने की क्षमता, मानसिक झुकाव (किसी भी विशिष्ट विषय की ओर ) इत्यादि दर्शाता है । तृतीय भाव में चंद्र का प्रभाव निर्णय लेने की क्षमता को कम करता है , शनि जातक को बहुत मेहनती, कैलकुललेटिव लेकिन आत्म विश्वास में कमी दर्शाता है । बुध दोहरी मानसिकता (करूँ या न करूँ) लेकिन अच्छी यादश्त को बताता है । सूर्य, मंगल, बृहस्पति यदि तृतीय भावके कारक होते है तो अत्याथिक साहस एवं आत्मविश्वास एवं ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता को बदाते है ।
चतुर्थ भाव के अध्ययन से ज्योतिष के माध्यम से यह पता लगा सकते है कि जातक कि प्राथमिक शिक्षा पूरी पाएगी या नहीं एवं शिक्षा की गुणवत्ता क्या रहेगी क्योकि आजकल इस भौतिकवाद के दौर में हर अभिवावक की यह अभिलाषा होती है कि उसका सुपुत्र/सुपुत्री अच्छे अंक प्राप्त करे । शिक्षा की दृष्टि से जन्मकुंडली का पंचम भाव का विशेष महत्व है क्योंकि इस भाव से सीखी हुई विद्या के आधार पर विकसित विवेक एवं मानसिक संस्कारों का भी पता चलता है । इसके अतिरिक्त यह भाव जातक की बुद्धि, अन्तर्ज्ञान, रचनात्मक शक्ति एवं क्षमता का सूचक है । चतुर्थ भाव में स्थित ग्रह की दशम भाव पर पूर्ण दृष्टि होती है जिसके फलस्वरूप वह ग्रह व्यवसाय को भी प्रभावित करता है ।
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उपरोक्त भावों में शुभ ग्रहो का युति, प्रतियुति, दृष्टि अथवा परिवर्तन द्वारा संबंध स्थापित हो तो जातक को शिक्षा में सफलता एवं शिक्षा के अनुरूप व्यवसाय तथा भाग्य की वृद्धि प्राप्त करता है । उच्च, मूलत्रिकोण, स्वराशि अथवा वर्गोत्तम नवांश में स्थित ग्रह जन्मकुंडली में बलवान माने जाते है । केंद्र अथवा त्रिकोण के स्वामी केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हो तो प्रबल योग कारक होते है । इसके विपरीत पाप ग्रहो की राशि और पाप ग्रहों के भाव में स्थिति अशुभ होती है । भावेश की 6,8,12 भावों में स्थिति हानिकारक होती है ।
4,5,9 भावो के स्वामियों की दशा, अंतर्दशा में जातक सफलता पूर्वक विद्या का अध्ययन करता है लेकिन यदि अध्ययन के दौरान शनि की साढ़े साती, 4,5,9 भावो के स्वामियों का राहू, केतू, शनि से युक्त होना या दृष्ट होती है तो विद्या अध्ययन के दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है । इस काल में बुध, गुरु एवं शुक्र की दशा पढ़ाई को निर्विघ्न आगे बढ़ती है जबकि राहू केतू, मंगल एवं शनि की दशा में कुछ न कुछ व्यवधान अवश्य रहता है ।
विभिन्न ग्रहो के शिक्षा संबंधी कारक्तव का विवरण आगामी अंक में दिया जा रहा है जिसके आधार पर ग्रहों के उपरोक्त भावो में स्थिति को देखकर पता लग सकता है की जातक के लिए किस विषय का चयन उपयुक्त रहेगा ।
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