हमारे हिन्दी साहित्य में महाकाव्य और खण्ड काव्य है जिसमें महाकाव्य का सर्व श्रेष्ठ उदाहरण रामचरितमानस है जिसे तुलसीदास ने लिखा है वैसे ही हमारे हिन्दी साहित्य में पुराण है जिसमें शिव पुराण, विष्णु पुराण प्रमुख है ।
विष्णु पुराण में होली की कथा है कि आखिर किस कारण होलिका दहन किया जाता है और होली खेलने का क्या महत्व है ।आज हम होली की कथा को जानेगे विष्णु पुराण के अनुसार एक हिरण्यकश्यप नाम का राजा था जिसे भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करके ये वरदान पा लिया था कि न तो उसे कोई स्त्री मार सकती है और न ही कोई पुरुष जिसके कारण वो अपने आप को भगवान मानने लगा था ।
कुछ समय बाद हिरण्यकश्यप को एक पुत्र की प्राप्ति होती है जो शुक्ल पक्ष की भांति बढ़ने लगता है जो विद्या अर्जन करने समय से ही भगवान विष्णु को अपना देवता मानने लगता है और उनकी पूजा अर्चना करता है वहीं दूसरी ओर उसका अंहकारी पिता हिरण्यकश्यप प्रहलाद को बहुत समझाता है किन्तु वो अपने पिता की बात नहीं मानता जिसे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद को मारने के कई प्रयत्न करता है किन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं होता है ।
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तब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे भगवान ब्रह्मा से ये वरदान प्राप्त है कि अग्नि उसे छु भी नहीं पाएगी वो अपने भाई को ये सुझाव देती है कि फाल्गुन की पूर्णिमा को में प्रहलाद को अग्नि में लेकर बैठुगी मुझे वरदान प्राप्त है योजना अनुसार सभी कार्य विधि पूर्वक होता है परन्तु भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद को अग्नि स्पर्श भी नहीं कर पाती और होलिका का वरदान अभिशाप में बदल जाता है और वो अग्नि में भस्म हो जाती है ।
भगवान विष्णु नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध करते हैं और तब से भगवान विष्णु के नरसिंह अवतार की पूजा अर्चना की जाती है ।आज हम इसे होली के रूप में मनाते है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का संकेत देता है ।फाल्गुन माह की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और उसके दूसरे दिन होली खेली जाती है ।
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