होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56
अवधि – 02 घंटे 20 मिनट
29 मार्च को रंगो का उत्सव रंगों में सराबोर होकर खेला जाएगा
फागुन मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा पर अधर्म की सूचक होलीका का अग्नि में भस्म होना और उसी अग्नि में धर्म यानी प्रहलाद सुरक्षित रह कर कुंदन स्वरूप बच जाते हैं और धर्म स्थापित रहता है भगवान के नाम संकीर्तन का प्रभाव स्पष्ट देखा जा सकता है की किस तरह हरि नाम संकीर्तन भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा हर पल अपने भक्तों की रक्षा करती है । इसी धर्म की विजय को प्रेम के साथ हम होली उत्सव के रूप में मनाते हैं। होलिका दहन से ठीक 8 तिथियां पहले आरम्भ होता है होलाष्टक
होलाष्टक
होलाष्टक आरम्भ 22.मार्च.21 से होलाष्टक अंत 28.मार्च.21
फागुन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक की अवधि होलाष्टक के नाम से जानी जाता है यह सब से नकारात्मक,ऋणात्मकता समय होता है । होलाष्टक यानी होली और आठ, होली की ये आठ तिथियां जिसमें शुभ ग्रह अपनी कमजोर अवस्था मे होते हैं। वही क्रूर ग्रह अपनी नकारात्मकता की प्रचंडता पर होती है । इसी कारण इन दिनों में कोई मांगलिक कार्य नही किया जाता हैं ।
16 संस्कार वर्जित होते हैं।
होली का पर्व रंग से ही क्यों मनाया जाता हैं।
होलाष्टक को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है फागुन मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर खुशी,सुख और प्रेम के देवता कामदेव ने भगवान शंकर के तप को भंग करने का प्रयास किया । जिस से कुपित होकर भगवान शंकर ने कामदेव को भस्म कर दिया इसीलिए होली की अष्टमी तिथि से ही खुशी,प्रसन्नता और प्रेम का संचार सृष्टि में बंद हो जाता है और यह सृष्टि प्रेम विहीन हो जाती है। इसीलिए यह सब से नकारात्मक समय होता है जब सर्जनात्मक शक्ति लुप्त हो चुकी होती है।
इस तरह कामदेव के भस्म होने पर सभी देवी देवता भयभीत हुए कि अब सृष्टि का संचार कैसे होगा । व्याकुल होकर सभी ने महादेव से प्रार्थना की एक बार फिर से कामदेव को पुनर्जीवित करें और इस सृष्टि को एक बार फिर से पुनर्जीवन का वरना दे।
आनंद,उत्साह और सर्जनात्मक सकारात्मक ऊर्जा के बिना सृष्टि का संचार कैसे संभव है इस पर भगवान शंकर ने फागुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर बढ़ती हुई नकारात्मकता जो 8 दिन से लगातार प्रचंडता हो गई थी। उन सब नकारात्मक ऊर्जा को अग्नि में प्रवेश कराकर एक बार फिर से कामदेव को पुनर्जीवित किया और सृष्टि को जो प्रेम विहीन उत्साह विहीन थी उसमें नई ऊर्जा और प्रेम का संचार किया इसी कारण होली पर रंगों का विशेष महत्व है क्युकी प्रेम के रंग में सृष्टि का संचार आरम्भ हुआ। प्रेम के अलग अलग स्वरूपो और रंगों के नए जीवन का उत्सव हम रंगों के साथ मानते हैं।
यही कारण है। की प्रेम के देवता भगवान श्री कृष्ण की नगरी में प्रेम का उत्सव सबसे धूमधाम से मनाया जाता है ।
होलाष्टक में क्या ना करें ।
ना करे कोई भी मांगलिक कार्य ,16 संस्कार वर्जित
बस जन्म और मृत्यु के संबंधित कार्य किये जा सकते हैं ।
होलाष्टक में क्या करें
कर सकते हैं ग्रहों के अशुभ प्रभावों को खत्म और मनोरथ पूर्ण
06 बजे शाम से रात्रि 9 बजे के बीच रोज करें 22 से 28 मार्च तक
होली के दिन, किए-कराए बुरी नजर आदि से मुक्ति के लिए कराएं कोलकाता में कालीघाट स्थित काली मंदिर में पूजा - 28 मार्च 2021
ग्रहों के अशुभ प्रभाव से बचने के लिए
नवग्रह मंत्रो का जाप करें
"ऊँ ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु।।"
नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए
माँ दुर्गा के मंत्र का जाप करे या लोंग और कपूर से मंत्र के साथ प्रज्वलित कंडे पर आहुति दे।
असाध्य रोग से परेशान हैं।
रुद्राक्ष की माला से ॐ रुद्र रुद्राय नमः का जाप करें
तरक्की के लिए
गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
अपनी आध्यात्मिक शक्ति को इतना प्रबल कर ले की सभी मनोकामनायें पूर्ण हो।
होलिका दहन के पूजन में
क्या करें खास-
जो धन धान्य से परिपूर्ण होने का प्राप्त हो आशीर्वाद
होलिका दहन मुहूर्त – 18:37 से 20:56
अवधि – 02 घंटे 20 मिनट
पूजन के समय अपने घर से साबुत अनाज साथ ले जाये और पूजन में उसे आहुति स्वरूप अर्पित करें ।आर्थिक पक्ष होगा मजबूत नहीं रहेगी कमी कभी धन-धान्य की कमी
क्या ना करें
बिना जल का अर्ध दिए पूजन नही करना चाहिये।
अकेले पूजन नही करना चाहिए। परिवार या सामूहिक रूप से पूजन करना चाहिए।
नव विवाही कन्याओं को ससुराल के होलिका दहन के पूजन में नही सम्लित नही होना चाहिए। नकरात्मकता ऊर्जा के साथ नए परिवेश से जुड़ना और प्रथम पूजन करना शुभ नही माना जाता ।
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