हिंदी में 'अर्ध' शब्द का अर्थ होता है आधा और इसी वजह से बारह वर्षों के अंतराल में आयोजित होने वाले पूर्ण कुम्भ के बीच छ: वर्ष बाद अर्ध कुंभ आयोजित होता है। हरिद्वार में आखरी कुंभ वर्ष 1998 में हुआ था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार क्षीर सागर के मंथन के दौरान समुद्र में से एक अमृत कलश निकला था तथा देवताओं और असुरों में इसकी प्राप्ति के लिए युद्ध शुरू हो गया था। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी पर चार स्थानों पर (प्रयागराज, हरिद्वार, नाशिक, उज्जैन) कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं। उस समय चंद्रमा ने घट से प्रस्रवण होने से, सूर्य ने घट फूटने से, गुरु ने दैत्यों के अपहरण से एवं शनि ने देवेन्द्र के भय से घट की रक्षा की। कलह शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धर कर सब देवताओं को अमृत बाँटकर पिला दिया। इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत हुआ। इससे पहले वर्ष 1938 में यह कुंभ ग्यारह वर्ष उपरांत पड़ा था।
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इस वर्ष के कुम्भ मेले के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र से महाकुंभ के आयोजन पर बातचीत की है। उसमें यह तय हुआ है कि कोविड-19 के मद्देनजर एहतियात बरतने को लेकर केंद्र सरकार महाकुंभ की एस.ओ.पी. जारी करेगी। वहीं, बैठक में कोरोना के साए में कुंभ के आयोजन पर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आई.सी.एम.आर) ने भी चिंता जताई है।
नियमों के अनुसार अपनी निगेटिव रिपोर्ट साथ रखें। महाकुंभ स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु जो एक दिन का रात्रि प्रवास करना चाहते हैं। उनको कोविड-19 की जांच कराने के बाद ही आने की हिदायत है। अगर उनकी रिपोर्ट निगेटिव है तभी वो कुंभ क्षेत्र में आ सकेंगे। मास्क पहनना सभी के लिए अनिवार्य है और जो मास्क नहीं पहनेंगे उनके खिलाफ कंपाउंडिंग या समन की कार्रवाई भी मेला पुलिस द्वारा की जाएगी। आपस में सोशल डिस्टेंसिंग रखने की अपील भी मेला प्रशासन की ओर से की जा रही है। हालांकि इस संबंध में कुंभ मेले के आई.जी. संजय गुंज्याल का मानना है कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन व्यवहारिक रूप से थोड़ा कठिन जरूर है मगर सभी से इसके पालन की अपील की जा रही है।
स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को अपना पंजीकरण ऑनलाइन पोर्टल पर करवाना होगा। पोर्टल पर उपलब्ध डेटा से यह पता चल सकेगा की किस दिन अधिक भीड़ रहेगी। उसी के अनुरूप मेला प्रशासन व्यवस्थाओं का आयोजन करेगा।
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