हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य या शुभ खरीदारी के लिए मुहूर्त का विशेष ध्यान दिया जाता है। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में किया गया कार्य जरूर सफल होता है। 25 नवंबर को गुरु पुष्य शुभ मुहूर्त का महा संयोग बन रहा है। मुहूर्त शास्त्रों के अनुसार गुरु पुष्य का संयोग बहुत ही शुभ और मंगलकारी होता है। साल में गुरु पुष्य का संयोग एक या दो बार ही बनता है। 25 नवंबर, गुरुवार को पुष्य नक्षत्र के साथ पांच और भी शुभ योग बन रहा है। यह गुरु पुष्य शुभ मुहूर्त सुबह से लेकर शाम तक रहेगा। साल 2021 का यह आखिरी गुरु-पुष्य योग है इसके बाद इस तरह का संयोग 28 जुलाई 2022 को ही बनेगा।
गुरु-पुष्य शुभ योग 2021 25 नवंबर, गुरुवार को साल का आखिरी गुरु पुष्य नक्षत्र योग बन रहा है। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र सुबह 06 बजकर 36 मिनट से शुरू होकर शाम 06 बजकर 50 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा इसी दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग भी बन रहा है जिसे भी शुभ खरीदारी के लिए शुभ माना जाता है। वहीं अगर दूसरे शुभ योग की बात करें तो इस दिन शुक्ल, शुभ और ब्रह्रा नाम का भी योग बन रहा है। ऐसे में 25 नवंबर 2021 को सभी तरह के शुभ कार्य और खरीदारी किए जा सकते हैं।
कालभैरव जयंती पर दिल्ली में कराएं पूजन एवं प्रसाद अर्पण, बनेगी बिगड़ी बात - 27 नवंबर 2021
गुरु-पुष्य नक्षत्र का महत्व-
इससे पहले दिवाली से पहले 28 अक्तूबर 2021 को गुरु-पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग बना था। इन शुभ मुहूर्तों में जमीन, मकान, ज्वैलरी, गाड़ियां और सभी तरह के इलेक्ट्रनिक समान की खरीदारी करना बहुत शुभ और फलदायक रहता है। ज्योतिष शास्त्र के सभी 27 नक्षत्रों में पुष्य नक्षत्र को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है। पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरुपुष्य, और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी।
पुष्य नक्षत्र में गुरु का जन्म-
बृहस्पति देव भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, बृहस्पतिं प्रथमं जायमानः तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभ फलदाई कहे गये हैं किन्तु मां पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
-संकलनकर्ता
ज्योतिषाचार्य पं.सौरभ त्रिपाठी