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Home ›   Blogs Hindi ›   Gupt Navratri: The Great Mantra of Ten Mahavidyas

गुप्त नवरात्रि : दस महाविद्याओं के महा मंत्र

ब्रजेन्द्र मिश्रा Updated 25 Jun 2020 11:32 AM IST
दस महाविद्याओं के महा मंत्र
दस महाविद्याओं के महा मंत्र - फोटो : Myjyotish
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जय माता दी मित्रों  जिस प्रकार से अश्विन मास और चैत्र मास में देवी दुर्गा की नौ रूपों की पूजा की जाती है उसी प्रकार से माघ और आषाढ़ मास में देवी के दस महाविद्याओं की आराधना की जाती है। ये दस महाविद्याएं हैं- काली, तारा देवी, त्रिपुर-सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरी भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मातंगी व कमला हैं यह गुप्त नवरात्रि का  अवसर साधकों के लिए खास रहेगा। गुप्त नवरात्र 22 जून से शुरू होकर 29 जून को समाप्त होगी। पारण 30 जून को होगा। गुप्त नवरात्रि विशेषकर तांत्रिक क्रियाएं, शक्ति साधना, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दौरान देवी भगवती के साधक बेहद कड़े नियम के साथ व्रत और साधना करते हैं।

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इस दौरान लोग लंबी साधना कर दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। नौ दिन व्रत रखने वाले साधकों को काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। नमक और अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए। दिन में सोना नहीं चाहिए। किसी को भी अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। साधक को माता की दोनों समय आरती करना चाहिए। इन दिनों में दुर्गा चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ विशेष लाभदायी होता है। इस नवरात्रि में माता की आराधना रात के समय की जाती है। इन नौ दिनों के लिए कलश की स्थापना भी की जा सकती है।
    
                           गुप्त नवरात्रि में 10 महाविद्या के पूजन से मनोकामना पूर्ण होती है। गुप्त नवरात्रि में, प्रत्यक्ष नवरात्रि जैसा ही साधना, पूजा पाठ करने का नियम है। पहले दिन कलश स्थापना व आखिरी दिन विसर्जन के बाद पारण होता है।देवी भागवत के अनुसार जो साधक गुप्त नवरात्रि में कम समय में 10 महाविद्याओं में से  किसी एक भी महाविद्या की साधना करना चाहते हैं, वह इस गुप्त नवरात्रि में अनुष्ठान करें तो उन्हें जल्दी सफलता मिलेगी तथा मनोकामना पूरी होगी। इन 10 महाविद्याओं के मंत्र और लाभ लिख रहा हूं साधक इनमें से किसी भी एक देवी को प्रसन्न कर अपने कार्य सिद्ध कर सकते हैं 

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  • आदिशक्ति काली-  दस महाविद्या की प्रथम देवी हैं।
 मंत्र'ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं दक्षिण कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं स्वाहा।
 इस महाविद्या से विद्या, लक्ष्मी, राज्य, अष्टसिद्धि, वशीकरण, प्रतियोगिता विजय, युद्ध-चुनाव आदि में विजय मोक्ष तक प्राप्त होता है।
  • तारा-महाविद्या- यह दस महाविद्याओं में दूसरी महाविद्या हैं। शत्रुओं का नाश, ज्ञान तथा जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के लिए इनकी साधना की जाती है।
मंत्र प्रकार है- 'ॐ ऐं ओं क्रीं क्रीं हूं फट्।'
  • षोडशी महाविद्या- तीसरी महाविद्या हैं। इनके भैरव पंचवक्त्र शिव हैं। तथा हर क्षेत्र में सफलता हेतु इनकी साधना की जाती है।
  मंत्र  'श्री ह्रीं क्लीं ऐं सौ: ॐ ह्रीं क्रीं कए इल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नम:।'
  •  भुवनेश्वरी- चौथी महाविद्या हैं। इनके भैरव त्र्यम्बक शिव हैं। इनका साधक कीचड़ में कमल की तरह संसार में रहकर भी योगी कहलाता है। वशीकरण, सम्मोहन, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष देती हैं। पूजन सामग्री रक्त वर्ण की होनी चाहिए।
मंत्र- 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सौ: भुवनेश्वर्ये नम: या ह्रीं।'

 
  •  माता छिन्नमस्ता- 5वीं महाविद्या है। ये संतान प्राप्ति, दरिद्रता निवारण, काव्य शक्ति लेखन आदि तथा कुंडलिनी जागरण के लिए भजी जाती हैं।  मंत्र 'श्री ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरायनीये हूं हूं फट् स्वाहा।'
  •  त्रिपुर भैरवी- ये 6ठी महाविद्या हैं। ऐश्वर्य प्राप्ति, रोग-शांति, त्रैलोक्य विजय व आर्थिक उन्नति की बाधाएं दूर करने के लिए पूजी जाती हैं।
 मंत्र 'ह स: हसकरी हसे।'
  • धूमावती- 7वीं महाविद्या हैं। ज्येष्ठा लक्ष्मी कहलाती हैं। कर्ज से मुक्ति, दारिद्र्य दूर करने, जमीन-जायदाद के झगड़े निपटाने, उधारी वसूलने के लिए पूजी जाती हैं।
 मंत्र 'धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।'
  •  श्री बगलामुखी- 8वीं महाविद्या हैं। यह युग इनका ही है। रोग-दोष, शत्रु शांति, वाद-विवाद, कोर्ट-कचहरी में विजय, युद्ध-चुनाव विजय, वशीकरण, स्तम्भन तथा धन प्राप्ति के लिए अचूक साधना मानी जाती है।
मंत्र- 'ॐ ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिव्हा कीलय, बुद्धिं विनाश्य ह्लीं ॐ स्वाहा।'

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  • मातंगी- नवीं महाविद्या हैं। शीघ्र विवाह, गृहस्थ जीवन सुखी बनाने, वशीकरण, गीत-संगीत में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं।
मंत्र- 'श्री ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।'
  • कमला- दसवीं महाविद्या हैं। भौतिक साधनों की वृद्धि, व्यापार-व्यवसाय में वृद्धि, धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए पूजी जाती हैं।
मंत्र- 'ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद-प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:।'
मंत्र जप करते हुए मन को पवित्र रखें माता का ध्यान करें।

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