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गुप्त नवरात्रि पर दस विद्याओं का पूजन आवश्यक क्यों ? जानें इसके पीछे छुपा विशेष महत्व

Myjyotish Expert Updated 06 Jul 2021 11:19 AM IST
Gupt Navaratri 2021
Gupt Navaratri 2021 - फोटो : Google
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गुप्त नवरात्रि 2021 - हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि पर्व शुरू होंगे, यह शुभ तिथि 11 जुलाई को पड़ेगी। यानी आषाढ़ गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई 2021 से प्रारंभ हो रही है जिसका समापन 18 जुलाई 2021 को होगा। हिंदू धर्म में नवरात्रि पर्व प्रमुख पर्वों में से एक माना जाता है। इस पर्व में मां शक्ति की आराधना विधि-विधान से की जाती है। एक वर्ष में कुल मिलाकर चार नवरात्रि आती हैं। जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि के अलावा चैत्र और शारदीय नवरात्रि शामिल हैं। पहली गुप्त नवरात्रि माघ के महीने में आती है और दूसरी गुप्त नवरात्रि आषाढ़ माह में मनायी जाती है। गुप्त नवरात्रि आम नवरात्रि से भिन्न होती है। दरअसल इसमें तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मां भगवती देवी की आराधना की जाती है। इस पर्व में दस महाविद्याओं की साधना करने का विधान है।

इस नवरात्र को करने में साधक को पूर्ण संयम और शुद्धता के साथ मां भगवती की आराधना करनी चाहिए। गुप्त नवरात्रि की पूजा के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरुपों के साथ-साथ दस महाविद्यियाओं की भी पूजा का विशेष महत्व है। ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगुलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं। क्योंकि इस दौरान मां की आराधना गुप्त रुप से की जाती है, इसलिए इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है।

सांसारिक लोग इस नवरात्रि को भी ठीक उसी तरह मनाएं जिस तरह आप लोग चैत्र और शारदीय नवरात्रियों को मनाते हैं। गुप्त नवरात्रों के नौ दिनों में देवी के नौ स्वरुपों की पूजा करें। मां दुर्गा के नौ स्वरुपों की पूजा नवरात्र के भिन्न-भिन्न दिन की जाती है।

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 दस महाविद्याओं की एक साथ पूजा कैसे हो?

दस महाविद्याओं की उपासना भोगसिद्धयों के साथ जीवनमुक्ति के लिए भी अचूक साधन है. अत: यह आवश्यक है कि इनका पूजा विधान तथा स्थापना विधि विशेष रूप से समझ ली जाय. महाभागवत में नारद के प्रश्न पर महादेव जी ने कहा कि, काली अथवा कामाख्या को केन्द्र में रखकर काली के बायें भाग में तारा तथा दाहिने भाग में भुवनेश्वरी की प्रतिष्ठा करे.

अग्निकोण में शोडशी तथा नेर्ऋत्य में भैरवी की स्थपना करें. वायव्य में छिन्नमस्ता तथा पीठ भाग में बगलामुखी को विराजमान करे. ईशान कोण में त्रिपुरसुंदरी, ऊधर्व भाग में मातंगी, पश्चिम में धुमावती की पूजा करे. इस महापीठ के नीचे महारूद्र तथा ब्रम्हा, विष्णु आदि देवताओं की उनकी शक्तियों के साथ प्रतिष्ठा करें ।

संकट का तुरंत करे समाधान दस महाविद्यायें -

भिन्न भिन्न देवता भिन्न भिन्न युगों में प्रथक उपासना पद्धतियों से साधकों को अभीष्ट प्रदान किया करते हैं लेकिन चारों युगों में सदैव ही मूलभूत रूप से सम्पूर्ण संतुष्टि, सामर्थ्य और सिद्धि प्रदान करने की झमता केवल दश महाविद्याओं में ही है. इनकी महिमा अनंत एवं विराट से भी अधिक है. यही कारण है कि महाविद्याओं के अनुष्ठान शीघ्र ही अपने चमत्कार प्रकट कर दिया करते हैं.

आदिशक्ति पीठ माँ ललिता देवी मंदिर, आठासी हज़ार ऋषिओं की तपोभूमि नेमीषारण्य -
भारत ऋषि-मुनियों की धरती कहलाता है। भगवान के अधिकतर अवतार भी इसी पवित्र व पावन भूमि पर हुए हैं। भारत की सनातन संस्कृति में नैमिषारण्य को तीर्थ अथवा पावन धाम के नाम से जाना जाता है। इस तीर्थ का वर्णन बहुत सारे धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में गोमती नदी के तट पर ये अवस्थित है।  मार्कण्डेय पुराण के अनुसार यह स्थल 88 हजार ऋषियों की तपोस्थली रहा है.नैमिषारण्य, इसके नाम में ही अरण्य है। अर्थात् नैमिषारण्य एक वन था। इस अरण्य में वेद व्यासजी ने वेदों, पुराणों तथा शास्त्रों की रचना की थी तथा 88000 ऋषियों को इसका गूढ़ ज्ञान दिया था।

नैमिषारण्य के प्रमुख आकर्षण केन्द्र है, ललितादेवी का मन्दिर - बता दें कि यहां मान्यताओं के अनुसार जब विष्णु भगवान ने भोलेनाथ के क्रोध से ब्रह्मांड को बचाने के लिए देवी सती के 51 टुकड़े कर दिए थे जिसके बाद जहां भी देवी सती के गहने और शरीर के अंग गिरे वो स्थान शक्तिपीठ कहलाए।

उन्ही 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ  है माता ललिता देवी का यह प्रसिद्ध धाम. जिनके दर्शन मात्र से आपके सभी कष्ट, दुख दूर हो जाते हैं और मां अपने हर एक भक्त की झोली खुशियों से भर देती हैं।इस अनूठे शक्तिपीठ में जहां पर देवी सती का ह्रदय गिरा था। कहा जाता है कि ये एक ऐसा शक्तिपीठ जहां आज भी मां का ह्रदय धड़कता है.इस शक्ति पीठ पर यूं तो पूरे साल श्रद्धालुओं के दर्शन पूजन का क्रम बना रहता है,लेकिन गुप्त नवरात्र में माँ के दर्शन का खास महत्व है । गुप्त नवरात्रि के तीसरे दिन मां ललिता देवी की उपासना की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, मां ललिता देवी की साधना अति चमत्कारिक फलदायी और कठिन मानी जाती है. दस महाविद्याओं में से एक मां ललिता देवी को षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी व राजराजेश्वरी के नाम से भी जानते हैं ।

अगर आप भी माता ललिता देवी की कृपा प्राप्त करना चाहते है तो गुप्तनवरात्र के शुभ और चमत्कारिक अवसर पर myjyotish.com पर आज ही बुक कीजिये नेमिषारण्य की पवित्र यात्रा, शीघ्र कीजिये कहीं ये अवसर छूट न जाये ।

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