क्योंकि माना जाता है कि जिस दंपत्ति को संतान सुख नहीं मिल पाता है वह यहां आकर अगर सच्चे दिल से पूजा करें तो उसको संतान सुख की प्राप्ति होती है ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि घुष्मा जो शिव की परम भक्त थी उसे भी शिवालय के पास अर्थात सरोवर के पास अपना पुत्र जीवित मिला था तभी से ऐसी मान्यता पड़ गई कि जो कोई दंपति यहां पर आकर सच्चे दिल से भगवान शिव की आराधना करता है उसे संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है इस ज्योतिर्लिंग की आराधना और पूजा करने के लिए केवल हमारे देश से ही लोग नहीं जाते बल्कि देश विदेशों से भिन्न भिन्न प्रकार के समूह के लोग दर्शन करते हैं तथा अपनी मनोकामनाएं पूर्ति के लिए पूजा और अर्चना भी करते हैं ।
इस महाशिवरात्रि अपार धन ,वैभव एवं संपदा प्राप्ति हेतु ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में कराएं रूद्राभिषेक : 11 मार्च 2021
पौराणिक कथा:
दक्षिण देश के देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वे दोनों शिव भक्त थे किंतु सन्तान न होने से चिंतित रहते थे। पत्नी के आग्रह पर उसके पत्नी की बहन घुश्मा के साथ विवाह किया जो परम शिव भक्त थी। भगवान शिव की कृपा से उसे एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे सुदेश का घुश्मा से ईष्या होने लगी कि मेरे पति पर भी उसने अधिकार जमा लिया। संतान भी उसी की है। यह कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ने लगा। इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा था। धीरे-धीरे वह जवान हो गया। उसका विवाह भी हो गया। सुदेहा ने अवसर पा कर घुश्मा के बेटे की हत्या कर दी। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे।
लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह हमेशा कि तरह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भाँति आकर अपनी मां के चरणों पर गिर पड़ा। भगवान शिवजी की कृपा से बालक जी उठा। घुश्मा की प्रार्थना पर वह स्थान शिवजी सदैव वास करने का वरदान दिया और उस स्थान पर वास करने लगे और बाद में घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुएं। उस तालाब का नाम भी तबसे शिवालय हो गया।
आरती की समय सारणी और दर्शन का समय:
मंदिर के खुलने का समय- सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक
सावन के महीने में भक्तों के लिए मंदिर को प्रातः 3:00 बजे से रात 11:00 बजे तक खोल दिए जाते हैं
आरती का समय और मुख्य त्रिकाल पूजा सुबह 6:00 बजे तथा रात 8:00 बजे होती है
कुछ विशेष नियम:
पुरुष भक्तों को ऊपरी शरीर पर वस्त्रों को पहनने की मनाई है अर्थात वह अपने शरीर से कमीज एवं बनियान को पहनकर अंदर नहीं जा सकते तथा किसी भी प्रकार के चमड़े अर्थात बेल्ट को ही उतार कर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं
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