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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग जिसकी महिमा से निसंतान को भी होते हैं संतान

Myjyotish Expert Updated 10 Mar 2021 06:13 PM IST
Grishneshwar jyotirling
Grishneshwar jyotirling - फोटो : Myjyotish
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घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग जिसे कई लोग घुश्मेश्वर घुसृणेश्वर या घृष्णेश्वर भी कहा जाता है। यह महाराष्ट्र प्रदेश में दौलताबाद से बारह मील दूर वेरुलगाँव के पास स्थित है। यह भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से अंतिम ज्योतिर्लिंग है एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं जिसका निर्माण बौद्ध भिक्षु ने किया था यह ज्योतिर्लिंग उसी के पास स्थित है पुराणों में भी ज्योतिर्लिंग का  वर्णन मिलता है ज्योतिर्लिंग के पास एक बड़ा सरोवर है इस सरोवर को लोग शिवालय कहते हैं  लोगो  का  यहां तक मानना है कि इस शिवालय  के दर्शन मात्र से लोगो के  सभी प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति होती है तथा उनके सभी प्रकारों के दुखों का नाश होता है घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग अर्थात शिवलिंग की स्थापना शिव की भक्त घुष्मा ने की थी उनकी भक्ति के प्रसन्न होकर ही भगवान शिव ने यहां पर विराजमान हुए तथा तभी से इस ज्योतिर्लिंग का नाम घुश्मेश्वर पड़ गया यह सभी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से विशेष दर्जा इसलिए प्राप्त करता है । 

क्योंकि माना जाता है कि जिस दंपत्ति को संतान सुख नहीं मिल पाता  है वह यहां आकर अगर सच्चे दिल से पूजा करें तो उसको संतान सुख की प्राप्ति होती है ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि घुष्मा  जो शिव की परम भक्त थी उसे भी शिवालय के  पास  अर्थात सरोवर के पास अपना पुत्र जीवित मिला था तभी से ऐसी मान्यता पड़ गई कि जो कोई दंपति यहां पर आकर सच्चे दिल से भगवान शिव की आराधना करता है उसे संतान सुख की प्राप्ति अवश्य होती है इस ज्योतिर्लिंग की आराधना और पूजा करने के लिए केवल हमारे देश से ही लोग नहीं जाते बल्कि देश विदेशों से भिन्न भिन्न प्रकार के समूह के लोग दर्शन करते हैं तथा अपनी मनोकामनाएं पूर्ति के लिए पूजा और अर्चना भी करते हैं ।

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 पौराणिक कथा:
 दक्षिण देश के देवगिरि पर्वत के निकट सुधर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पत्नी सुदेहा के साथ रहता था। वे दोनों शिव भक्त थे किंतु सन्तान न होने से चिंतित रहते थे। पत्नी के आग्रह पर उसके पत्नी की बहन घुश्मा के साथ विवाह किया जो परम शिव भक्त थी। भगवान शिव की कृपा से उसे एक स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे सुदेश का घुश्मा से ईष्या होने लगी कि मेरे पति पर भी उसने अधिकार जमा लिया। संतान भी उसी की है। यह कुविचार धीरे-धीरे उसके मन में बढ़ने लगा। इधर घुश्मा का वह बालक भी बड़ा हो रहा था। धीरे-धीरे वह जवान हो गया। उसका विवाह भी हो गया। सुदेहा ने अवसर पा कर घुश्मा के बेटे की हत्या कर दी। सुधर्मा और उसकी पुत्रवधू दोनों सिर पीटकर फूट-फूटकर रोने लगे।

लेकिन घुश्मा नित्य की भाँति भगवान शिव की आराधना में तल्लीन रही। जैसे कुछ हुआ ही न हो। पूजा समाप्त करने के बाद वह हमेशा कि तरह पार्थिव शिवलिंगों को तालाब में छोड़ने के लिए चल पड़ी। जब वह तालाब से लौटने लगी उसी समय उसका प्यारा लाल तालाब के भीतर से निकलकर आता हुआ दिखलाई पड़ा। वह सदा की भाँति आकर अपनी मां के चरणों पर गिर पड़ा। भगवान शिवजी की कृपा से बालक जी उठा। घुश्मा की प्रार्थना पर वह स्थान शिवजी सदैव वास करने का वरदान दिया और उस स्थान पर वास करने लगे और बाद में घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुएं। उस तालाब का नाम भी तबसे शिवालय हो गया।

आरती की समय सारणी और दर्शन का समय:
 

 मंदिर के खुलने का समय- सुबह 5:30 बजे से रात 9:30 बजे तक
 सावन के महीने में भक्तों के लिए मंदिर को प्रातः 3:00 बजे से रात 11:00 बजे तक खोल दिए जाते हैं
 आरती का समय और मुख्य त्रिकाल पूजा सुबह 6:00 बजे तथा रात 8:00 बजे होती है
 
 कुछ विशेष नियम:
 पुरुष भक्तों को ऊपरी शरीर पर वस्त्रों को  पहनने की मनाई है अर्थात वह अपने शरीर से कमीज एवं बनियान को पहनकर अंदर नहीं जा सकते तथा किसी भी प्रकार के चमड़े अर्थात बेल्ट को ही उतार कर  ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर सकते हैं

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