शनि त्रयोदशी पर कोकिलावन शनि धाम में कराएं शनि देव का पूजन, पाएं कष्टों से मुक्ति
•पूजन की सरल विधि
1. इस दिन जो महिलाएं व्रत रखती हैं वह सुबह स्नान से निवृत्त होकर धुले हुए एवं साफ-सुथरे वस्त्र धारण करे।
2. इसके बाद गाय को उसके बछड़े के साथ स्नान कराएं और दोनों को नए वस्त्र ओढ़ाए और वह फूल की माला पहनाए। तथा उन्हें चंदन का तिलक लगाएं।
3. आप तांबे के बर्तन में अक्षत जल तिल सुगंध तथा फूलों को मिला लें और 'क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते। सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥' मंत्र का जाप करें।
4. और अब गौ माता के चरणों पर लगी धूल से अपने माथे पर तिलक लगाएं और बछ बारस की कथा सुने।
5. दिनभर व्रत रखकर रात में अपने ईस्ट भगवान वह गौ माता की आरती करके भोजन ग्रहण करें।
• गोवत्स द्वादशी की कथा
बछ बारस की पुरानी कथा के अनुसार बहुत समय पहले एक गांव में एक साहूकार अपने साथ बेटों व फोटो के साथ रहता था। साहूकार ने गांव में एक तालाब बनवाया था लेकिन तालाब में जल नहीं था। तालाब नहीं भरने का कारण पूछने के लिए उसने पंडित से पूछा। तो पंडित ने कहा इसमें जल भरने के लिए तुम्हें अपने बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी। तो साहूकार ने अपनी बहू को पीहर भेज दीया और उसके पीछे अपने बड़े पोते की बलि दे दी इतने में तेज वर्षा हुई और तालाब भर गया। इसके बाद जब बछ बारस आई और सभी महिलाएं तालाब बनने के कारण उसमें पूजा करने आई साथ ही साहूकार भी अपने परिवार के साथ वहां पूजा करने गया। साहूकार ने दासी को बोला कि वह गेहूंला पका लें। साहूकार का तात्पर्य गेहूं के दान से था परंतु दासी यह नहीं समझ पाई और उसने गेहूंला जो गाय के बछड़े का नाम था उसे पका दिया। और उसी दिन बड़े बेटे की पत्नी भी पीहर से तालाब पूछने आई थी तालाब पूजन के बाद जब उसने अपने बच्चों को प्यार करने लगी तभी बड़े बेटे के बारे में पूछा और वही बड़ा बेटा तालाब से निकलकर बोला ना मुझे भी प्यार करो। यह देखकर सब हैरान हो गए सास ने बहू को सारी बात बताई। और तालाब पूजन के बाद जब सारे घर पहुंचे तो देखा कि गाय का बछड़ा नहीं दिख रहा तो दासी से पूछने पर उसने कहा कि उसने उसे पका दिया। तो साहूकार ने कहा अभी एक बात तो उतरा है तुमने दूसरा पाप कर दिया। साहूकार ने वह गाय का बछड़ा मिट्टी में दबा दिया और जब शाम को गाय लौटी तो वह स्वयं के बच्चे को ढूंढने लगी तब बछड़ा मिट्टी में से निकल आया। और जब साहूकार ने देखा कि बछड़ा गाय का दूध पी रहा था। तब साहूकार ने यह बात पूरे गांव में फैला दी कि बछ बारस के दिन मां को स्वयं के पुत्र के लिए व्रत करने से लाभ प्राप्त होते है। और यह कहानी कहते सुनते ही सभी को मनोकामनाएं पूर्ण करती है।
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