स्कंद का संदर्भ यहां कार्तिकेय जी से किया गया है ,उनकी माता होने के कारण ही देवी को स्कंदमाता कहा जाता है। अपने स्वरूप में देवी ने एक हाथ में स्कंद अर्थात कार्तिकेय को अपनी गोद में पकड़ा है तथा उनके दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है तथा अन्य दो भुजाओं में एक में कमल का पुष्प व एक में वरदमुद्रा धारण किए हुए हैं। मान्यताओं के अनुसार देवी की पूजा करने भर से स्कन्द अर्थात कार्तिकेय भी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए साधकों को देवी की उपासना का खास ध्यान रखना चाहिए।
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देवी, कमल के आसन पर विराजमान होती हैं जिस कारण इन्हे पद्मासना भी कहा जाता है। माँ स्कंदमाता सिंह पर सवार होती हैं। इनकी आराधना से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। सूर्यमण्डल की अधिष्ठत्री होने के कारण इनके उपासक आलौकिक तेज तथा कांतिमय हो जाते हैं। अगर सच्चे मन से देवी की आराधना की जाए तो देवी के भक्तों को सफलता प्राप्त करने से कभी कोई रोक नहीं सकता।
देवी की आराधना से मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं। देवी को बड़े -बड़े विद्यावानों तथा सेवकों की जन्मदात्री माना गया है। इन्हे चेतना का निर्माण करने वाली देवी भी कहा गया है। कथन के अनुसार कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य एवं मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं। माँ की पूजा अर्चना करने वाले को कभी किसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।सभी को एकाग्रभाव से मन को पवित्र रखकर माँ की शरण में आने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसा करने से माँ की कृपा सदैव उनपर बनी रहेगी।
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