myjyotish

6386786122

   whatsapp

6386786122

Whatsup
  • Login

  • Cart

  • wallet

    Wallet

विज्ञापन
विज्ञापन
Home ›   Blogs Hindi ›   Ganga Dussehra: On Ganga Dussehra, not ten but one gets freedom from all the faults

Ganga Dussehra: गंगा दशहरा पर दस नहीं अपितु समस्त दोषों से मिलती है मुक्ति 

Myjyotish Expert Updated 08 Jun 2022 06:56 PM IST
गंगा दशहरा पर दस नहीं अपितु समस्त दोषों से मिलती है मुक्ति 
गंगा दशहरा पर दस नहीं अपितु समस्त दोषों से मिलती है मुक्ति  - फोटो : google
विज्ञापन
विज्ञापन
गंगा दशहरा पर दस नहीं अपितु समस्त दोषों से मिलती है मुक्ति 


पंचांग के अनुसार, गंगा दशहरा का पर्व ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. इस दिन को ज्येष्ठ दशहरा या जेठ दशहरा के नाम से भी जाना जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह समय देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण का समय भी रहा है. इस दिन गंगा का पूजन होता है तथा गंगा स्थल पर स्नान करने, हवन एवं दान करने का भी नियम होता है.  कहा जाता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है. यह सिर्फ दस पाप ही नहीं अपितु समस्त पापों के शमन का दिवस बन जाता है.  

बृहस्पतिवार के दिन गंगा दशहरा होने पर गुरु-चंद्रमा की समस्पतक दृष्टि द्वारा गजकेसरी योग का निर्माण होगा तथा मंगल ओर चंद्रमा का दृष्टि संबंध महालक्ष्मी योग का निर्माण करेगा. वृष राशि में बुध के साथ सूर्य का युति संबंध बुधादित्य योग का निर्माण होगा तथा स्वराशिगत शनि का प्रभाव अनुकूल होगा. इस दिन महेश नवमी, रवि योग भी बनेगा. इसके अलावा कुछ अन्य शुभ योग निर्मित होंगे. 

वराह पुराण एवं भविष्य पुराण के अनुसार गंगा दशहरा पर, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन विशेष योगों में किया जाने वाला गंगा स्नान पूजन उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. इन में से कुछ योग इस वर्ष निर्मित दिखाई देंगे जिसके कारण यह दिवस अत्यंत विशेष बन रहा है. 

जन्मकुंडली ज्योतिषीय क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

गंगा स्नान का शुभ समय 

गंगा दशहरा बृहस्पतिवार, 09 जून, 2022 को

दशमी तिथि प्रारम्भ - 09 जून, 2022 को 08:21
दशमी तिथि समाप्त - 10 जून, 2022 को 07:25 

हस्त नक्षत्र प्रारम्भ - 09 जून, 2022 को 04:31 
हस्त नक्षत्र समाप्त - 10 जून, 2022 को 04:26 

व्यतीपात योग प्रारम्भ - 09 जून, 2022 को 03:27
व्यतीपात योग समाप्त -10 जून, 2022 को 01:50

गंगा दशहरा शुभ चौघड़िया

शुभ - उत्तम
05:23 से 07:30 
चर - सामान्य
10:30 से 12:00 
लाभ - उन्नति
12:00 से 14:05 
अमृत - सर्वोत्तम
14:05 से 15:00


शुभ योग- 08:23 से 14:05 

सफलता योग- 11:51 से 12:45 

गंगा दशहरा पूजन से पितर होते हैं प्रसन्न 

गंगा दशहरा देवी गंगा को समर्पित है और इस दिन को उस दिन के रूप में मनाया जाता है जब भगीरथ के पूर्वजों की आत्माओं को मुक्ति प्रदान करने हेतु गंगा को पृथ्वी पर उतारा गया था. पृथ्वी पर आने से पहले, देवी गंगा भगवान ब्रह्मा के कमंडल में निवास कर रही थीं और देवी गंगा ने पृथ्वी पर स्वर्ग की पवित्रता भी प्रदान की थी. गंगा दशहरा पर भक्त देवी गंगा की पूजा करते हैं और गंगा में स्नान करते हैं।. गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करना अत्यधिक शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गंगा दशहरा के दिन गंगा में पवित्र डुबकी लगाने से सभी प्रकार के पाप धुल जाते हैं. इस दिन पूर्वजों के निमित्त किया जाने वाला दान कर्म भी अत्यंत शुभ होता है जो पितरों को शांति प्रदान करने वाला होता है. 

l श्रीमच्छनकराचार्य रचित गंगा स्तोत्र ll

देवि सुरेश्वरि भगवति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरल तरंगे।
शंकर मौलिविहारिणि विमले मम मति रास्तां तव पद कमले ॥ १ ॥

भागीरथिसुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यातः ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम् ॥ २ ॥

हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरु मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम् ॥ ३ ॥

आज ही करें देश के प्रतिष्ठित ज्योतिषियों से बात, मिलेगा हर परेशानी  का हल 

तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम् ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्तः किल तं द्रष्टुं न यमः शक्तः ॥ ४ ॥

पतितोद्धारिणि जाह्नवि गंगे खंडित गिरिवरमंडित भंगे ।
भीष्मजननि हे मुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवन धन्ये ॥ ५ ॥

कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवति कृततरलापांगे ॥ ६ ॥

तव चेन्मातः स्रोतः स्नातः पुनरपि जठरे सोपि न जातः ।
नरकनिवारिणि जाह्नवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ॥ ७ ॥

पुनरसदंगे पुण्यतरंगे जय जय जाह्नवि करुणापांगे ।
इंद्रमुकुटमणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ॥ ८ ॥

रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम् ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ॥ ९ ॥

अलकानंदे परमानंदे कुरु करुणामयि कातरवंद्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवासः खलु वैकुंठे तस्य निवासः ॥ १० ॥

वरमिह नीरे कमठो मीनः किं वा तीरे शरटः क्षीणः ।
अथवाश्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीनः ॥ ११ ॥

भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो यः स जयति सत्यम् ॥ १२ ॥

येषां हृदये गंगा भक्तिस्तेषां भवति सदा सुखमुक्तिः ।
मधुराकंता पंझटिकाभिः परमानंदकलितललिताभिः ॥ १३ ॥

गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम् ।
शंकरसेवक शंकर रचितं पठति सुखीः त्व ॥ १४ ॥

॥ इति श्रीमच्छनकराचार्य विरचितं गङ्गास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
 

ये भी पढ़ें

  • 100% Authentic
  • Payment Protection
  • Privacy Protection
  • Help & Support
विज्ञापन
विज्ञापन


फ्री टूल्स

विज्ञापन
विज्ञापन
विज्ञापन

Disclaimer

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms and Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree
X