प्रत्येक माह की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह तिथि अति विशिष्ट होती है। और इस तिथि को व्रत उपवास रखकर अनेक लाभ प्राप्त किए जा सकते है।
ज्योतिष शास्त्र में तीन गणों का वर्णन मिलता है- देव, मनुष्य और राक्षस। गणपति समान रूप से देवलोक, भूलोक और दानव लोक में प्रतिष्ठित हैं। श्री गणेश जी ब्रह्मस्वरूप हैं और उनके उदर में सब कुछ समा जाता हैं। और उनके उदर में यह तीनों लोक समाहित होने के कारण इनको लंबोदर कहते हैं और गणेश जी सब कुछ पचाने की क्षमता रखते हैं। लंबोदर होने का अर्थ है जो कुछ उनके उदर में चला जाता है, फिर वहाँ से निकलता नहीं है। गणेश जी परम रहस्यमय हैं, उनके इस रहस्य को कोई भेद नहीं सकता है।
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• गणेश महोत्सव का इतिहास
गणेश चतुर्थी का त्योहार देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इसके पीछे यह मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री गणेश का महाराष्ट्र(वर्तमान) में मेहमान बनकर स्वागत हुआ । राजा कार्तिकेय ने अपने भाई गणेश को लाल बाग में आमंत्रित किया। और कुछ दिन वहां रुकने का आग्रह किया। जितने दिन भगवान गणेश जी वहां रहे उतने ही दिन रिद्धि सिद्धि उनकी पत्नी और माता लक्ष्मी भी उधर रहे। गणेश जी के लाल बाग में रहने से वह क्षेत्र धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। तो कार्तिकेय ने इतने दिन का गणेशजी को लाल बाग का राजा मान कर उनका सम्मान किया। और यही पूजन गणपति महोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
बाद में इस महोत्सव का प्रारंभ छत्रपति शिवाजी के द्वारा पुणे में किया गया था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने यह पर्व बड़ी उमंग और उत्साह के साथ मनाया था। उन्होंने इस पर्व के माध्यम से जनमानस में जन जागृति का संचार किया। इसके पश्चात पेशवाओं ने भी गणपति महोत्सव के क्रम को आगे बढ़ाया। गणेश जी उनके कुलदेवता थे इसलिए वे भी अत्यंत उत्साह के साथ गणेश पूजन करते थे। पेशवाओं के बाद यह उत्सव कमजोर पड़ गया और केवल मंदिरों और राजपरिवारों में ही सिमट गया। इसके पश्चात 1892 में गणपति महोत्सव भाऊ साहब लक्ष्मण ने सार्वजनिक रूप से मनाना प्रारंभ किया।
स्वतंत्रता के पुरोधा लोकमान्य तिलक, सार्वजनिक गणपति महोत्सव की परंपरा से अत्यंत प्रभावित हुए और 1893 में स्वतंत्रता का दीप प्रज्ज्वलित करने वाली पत्रिका ‘केसरी’ में इसे स्थान दिया गया था । उन्होंने अपनी पत्रिका ‘केसरी’ के कार्यालय में इसकी स्थापना की और लोगों से आग्रह किया कि सभी इनकी पूजा-आराधना करें, ताकि जीवन, समाज और राष्ट्र में विघ्नों का नाश हो।
उन्होंने श्री गणेश जी को जन-जन का भगवान कहकर संबोधन किया। लोगों ने बड़े उत्साह के साथ उसे स्वीकार किया, इसके बाद गणेश उत्सव जन-आंदोलन का माध्यम बना। उन्होंने इस उत्सव को जन-जन से जोड़कर स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु जनचेतना जाग्रति का माध्यम बनाया और उसमें सफल भी हुए। आज भी संपूर्ण महाराष्ट्र इस उत्सव का केंद्र बिन्दु है, तथा यह त्यौहार जन-जन को जोड़ता है।
• गणेश महोत्सव का महत्व
भाद्रपद चतुर्थी के दिन गणपति महाराज की स्थापना से आरंभ होकर चतुर्दशी को होने वाले विसर्जन तक गणपति जी विविध रूपों में पूरे देश में विराजमान रहते हैं। उन्हें मोदक तो प्रिय हैं ही, परंतु गणपति अकिंचन को भी मान देते हैं, अतः दूर्वा, नैवेद्य भी उन्हें उतने ही प्रिय हैं। गणपति महोत्सव जन-जन को एक सूत्र में पिरोता है।
अपनी धर्म और संस्कृति का यह अप्रतिम सौंदर्य भी है, जो सबको साथ लेकर चलता है। श्रावण की पूर्णता, जब धरती पर हरियाली का सौंदर्य बिखेर रही होती है, तब मूर्तिकार के घर -आँगन में गणेश प्रतिमाएँ आकार लेने लगती हैं। प्रकृति के मंगल उदघोष के बाद मंगलमूर्ति की स्थापना का समय आना स्वाभाविक है।
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