इस नवरात्रि, सर्व सुख समृद्धि के लिए कामाख्या देवी शक्ति पीठ में करवाएं दुर्गा सप्तशती का विशेष पाठ : 7 - 13 अक्टूबर 2021 - Durga Saptashati Path Online
वैसे तो दुर्गा सपने का पाठ रोज ही भारतीय परिवारों में किया जाता है परंतु नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है नवरात्रि के दिनों में इनका पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है शास्त्रों में भी इसके महत्व को उजागर किया गया है शास्त्रों में बताया गया है कि नवरात्रि के दिनों में इनका पाठ करने से अन धन यश की प्राप्ति होती है कई बार ऐसा होता है कि हम जल्दी-जल्दी में पास करते हैं और इसी जल्दी-जल्दी के चक्कर में हम कई गलतियां कर बैठते हैं जिसकी तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता है आज हम इस लेख के माध्यम से उन गलतियों को ही जानने का प्रयास कर रहे हैं जो गलतियां हम पाठ के दौरान कर देते हैं और हमें उन्हें नहीं करना चाहिए आइए जानते हैं कि दुर्गा सप्तमी पर किस तरह बात करना चाहिए किस प्रकार की गलतियां नहीं करनी चाहिए और किस तरह पाठ करने से फल की प्राप्ति होती है हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार नवरात्रि की पूजा में दुर्गा सप्तशती का पाठ करने की भी मान्यता है. इस पाठ को करने के लिए खास नियम बनाए गए हैं. आइए, जानते हैं क्या हैं विशेष नियम
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के नियम
– सप्तशती का पाठ करने से पहले स्नान करना जरूरी है.
– पाठ करने से पहले साफ-सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए.
– दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले बैठने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग करें.
– मंदिर पर गंगा जल छिड़क कर, दीपक जलाएं.
– पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा करें.
– माथे पर रोली या कुमकुम का तिलक लगाएं.
-लाल फूल, अक्षत और स्वच्छ जल माता को अर्पित करें.
-इसके बाद पाठ का संकल्प लें.
-अब सबसे पहले उत्कीलन मंत्र का जाप करें.
– भक्ति भाव से ध्यान लगाते हुए दुर्गा सप्तशती पाठ का आरंभ करें.
– सप्तशती का पाठ ज्यादा धीमें स्वर में न करें.
– अपना उच्चारण साफ रखें.
– रोज कम से कम एक अध्याय पूरा करें.
देवी दुर्गा का मंत्र
सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोस्तु ते।।
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च।।
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति।।
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