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जानिए दिवाली पर दिया जलाना क्यों माना जाता है हमारी परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा और क्या हैं इसके कारण

my jyotish expert Updated 27 Oct 2021 10:36 AM IST
Deep prajwalan on Diwali
Deep prajwalan on Diwali - फोटो : google
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हर त्योहार का मूल कारण अंतस की शुद्धता, ऊर्जा का संचार और सुख की अनुभूति होता है। प्रत्येक त्योहार मनाने के पीछे आध्यात्मिक, दार्शनिक,वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक कारण छिपे होते हैं। दीपोत्सव का आध्यात्मिक और दार्शनिक भाव है-असतों मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। यानी अज्ञानता के अंधकार से मुक्त करके ज्ञानरूपी प्रकाश की ओर ले जाने का पर्व। लेकिन यह पर्व संकल्प का पर्व भी है और सबसे बड़ा संकल्प है मनुष्य को अपने आप को भीतर से बदलने का संकल्प करना। हर साल का दीपपर्व आगमन हमें नैतिकता को धारण करने का सतत अवसर उपलब्ध करवाता है। वहीं आध्यात्मिक रूप से यह पर्व बंधन से मुक्ति का पर्व माना जाता है। दीपक प्रतीक है आत्मा के उज्ज्वल रूप का और आपके द्वारा प्रज्वलित ज्योति सद्गुण का भाव है। दीपावली क्षणिक खुशी का कारण नहीं है, बल्कि जीवनभर की खुशहाली का संचार है।

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आज हमारा समाज जिस मोड़ पर खड़ा है उस लिहाज से दीपावली के मूल संदेशों को जीवन में उतारना बेहद प्रासंगिक हैं। यह बात ध्यान रखें कि दिवाली का मकसद सिर्फ लक्ष्मी के आगे दीपक जलाकर धन मांगना, पटाखे फोड़ना और मिठाई खाना नहीं है। दीपक आत्म ज्योति का प्रतीक है जो हमें भीतर के बुरे विचारों, बुरे आचरण और बुरे कर्मों को मिटाकर पवित्र बनने का संकेत देता है। इसे समझना है हमें। यदि आपके जीवन का एक भी पहलू अंधकारमय होगा तो आपका जीवन कभी भी पूर्णता अभिव्यक्त नहीं कर सकेगा। दीयों की शृंखला का भाव है कि यदि आपके अंदर सेवा का भाव है तो उससे संतुष्ट न हों, बल्कि अपने सेवा भाव को ओर अधिक विस्तार दें। अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को प्रकाशित करने का प्रयास करें। इस त्योहार का एक और गुण रहस्य पटाखों के फूटने के भाव में दबा है।

जीवन में हम कई बार पटाखों के समान होते है, अपने भीतर हताशा, अवसाद, क्रोध, ईर्ष्या आदि के साथ फूट पड़ने की सीमा तक पहुंचे हुए। पटाखों को फोड़ने की क्रिया लोगों की भावनाओं को अभिव्यक्ति देने का एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास का रूप है। विस्फोट का मतलब हुआ अपनी दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना। हृदय से खाली हो जाना। अब यदि आपके परिवार का एक भी सदस्य अंधकार में है तो आप खुश नहीं रह सकते। सोने, चांदी की पूजा तो करते हैं मगर ये केवल बाहरी प्रयोग मात्र है। बुद्धिमत्ता और उच्च नैतिक आचरण ही वास्तविक धन है। हमारा चरित्र, शांत स्वभाव और आत्म विश्वास असली पूंजी है।

दरअसल पाप अज्ञान के पर्दे के भीतर ही होते हैं। केवल ज्ञान ही हमें सन्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। अत: आलोकित होने वाली दीपकों की कतारें हमें निरंतर ज्ञान के प्रकाश का संदेश देती हैं। उसे हमें ग्रहण करना है।कतारबद्घ दीपकों से यह प्रेरणा लें कि हम उससे सहयोग का सबक सीखकर उसकी पृष्ठभूमि में छिपे हुए दर्शन को व्यावहारिक रूप में ढालेंगे और संसार को उससे आलोकित करेंगे। जिससे कि हम अपना जीवन किसी लक्ष्य के लिए समर्पित कर सकें।

सामान्यतया काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि अवगुण अपनी सीमाओं को पार करके अन्धकार का आवरण धारण करके हमारे हृदय पर छा जाते है और हमारे आत्मा के प्रकाश को इस तरह से रोक देते है जैसे कि सूर्य की रोशनी को बादल रोक लेता है। इससे मुक्ति पाने का उपाय ही है -लौ। हमें लौ के उजाले को अपने आत्मा के उजाले से इस तरह से जोड़कर रखना होगा ताकि प्रकाश का पुंज ओर तीव्र होकर भ्रम के कोहरे को पार कर हमारे भीतर को प्रदीप्त कर सकें। जब तक कि आपके अंदर की भावना संकीर्ण है तब तक आपका त्योहार मनाना व्यर्थ हैे। ऐसी सोच के कारण ही कभी-कभी आपकी बाहरी दया और सेवा का भाव उस वक्त धरा का धरा रह जाता है जब आप जश्न के शोर में इतने मशगूल हो जाते हैं कि अन्य जीव जंतुओं यानी पशु, पक्षियों को कितनी तकलीफ होती यह भान नहीं रहता।त् ो थोड़ी उदारता का भाव मन में रखें।

जरूरतमंद की सेवा ही पूजा

अपने हृदय में द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार और मोह को त्यागकर बेसहारों का सहारा बनें। किसी जरूरतमंद की सेवा ही असली पूजा है। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि -नर सेवा ही नारायण सेवा है। यथा आपके भीतर ऐसा प्रकाश छुपा है जिसे बाहर लाकर आप गुमनाम जीवन जी रहे लोगों के जीवन को रोशन कर सकते है। बस इस बात का मान रखें और दीपावली दीपक वाली के साथ ही दिलवाली मनाएं, जिसकी यादें हमारे जीवन को हमेशा महकाएं। त्योहार मनाना चाहिए जीवन जीने को लिए। कल्याण के लिए। खुशियां बांटने के लिए। मानवीयता को कायम करने के लिए।




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