सूर्य और चंद्रमा से मनुष्य का गहरा नाता है। जिसके चलते सूर्य और चंद्रमा पर लगने वाले ग्रहण का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है ।
दोनों ग्रहण एक खगोलीय घटना होते हैं ।जहाँ सूर्य ग्रहण होने का कारण सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा का आ जाना होता है। वहीं चंद्रग्रहण का कारण चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी का आ जाना होता है । जिसके कारण सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर नहीं पड़ता है और चंद्रमा के पास अंधेरा छा जाता है जिसे चंद्रग्रहण कहते हैं ।
आज हम इन दोनों के बीच के अंतर को जानेगें -
चंद्र ग्रहण (Lunar Eclipse):
जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तब सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाता है जिसके प्रभाव से चंद्रमा की सतह पर अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को चंद्र ग्रहण कहते हैं।
चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है ।
चन्द्र ग्रहण के समय क्या नहीं करना चाहिए :
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक चन्द्रग्रहण के समय किसी को भी सोना, कंघा करना, ब्रश करना, बाहर जाना और चांद को नहीं देखना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो ऐसा करने में कोई हानि भी नहीं है।
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सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse):
जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा आ जाता है। जिसके चलते सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता है। और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में भी अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं। इसके साथ ही सूर्य ग्रहण केवल तभी होता है जब चंद्रमा अमावस्या को पृथ्वी के कक्षीय समतल के निकट होता है।
जैसा की हम अवगत है कि चंद्र ग्रहण सदैव पूर्णिमा की रात को होता है, जबकि सूर्य ग्रहण हमेशा अमावस्या की रात को होता है।
सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं- पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण।
सूर्य ग्रहण देखने में सावधानी:
एक पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य को नंगी आँखों से देखा जा सकता है किंतु आंशिक सूर्य ग्रहण और वलयाकार सूर्य ग्रहण को बिना आवश्यक तकनीकी तथा यंत्रों के नहीं देखा जा सकता ।
सूर्य ग्रहण को आँखों में बिना कोई उपकरण लगाए देखना खतरनाक साबित हो सकता है जिससे स्थायी अंधापन या रेटिना में जलन हो सकती है जिसे सोलर रेटिनोपैथी (Solar Retinopathy) कहते हैं।
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