गायत्री की कृपा से मिलने वाले प्रधानों में से एक लक्ष्मी भी हैं। समुद्र मंथन से लक्ष्मी जी निकली और लक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया था। लक्ष्मी जी का प्रतीक श्री यंत्र होता है। हिंदू धर्म की धन संपत्ति, सुख संपदा की देवी के रूप में लक्ष्मी जी प्रसिद्ध मानी जाती हैं।
लक्ष्मी और महालक्ष्मी की कुछ ख़ास पहलू
जो व्यक्ति लक्ष्मी के चंचल और मोह जाल में फंस जाता है लक्ष्मी उसे छोड़ देती है। महालक्ष्मी व्यक्ति के भाग्य से नहीं कर्म से प्रसन्न होती हैं। व्यक्ति अपने जीवन में जो भी कर्म करता है उसके अनुसार ही महालक्ष्मी की कृपा व्यक्ति के जीवन पर पड़ने लगती है। महालक्ष्मी हमेशा भगवान विष्णु जी की सेवा में तत्पर रहती हैं। पुराणों में जहां-जहां विष्णु और लक्ष्मी जी के बारे में बतलाया गया है महालक्ष्मी श्री हरि के चरण दबाते हुए देखी गई हैं।
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लक्ष्मी का अर्थ
लक्ष्मी नाम का अर्थ धन की देवी होता है अथवा भाग्यशाली भी कह सकते हैं। लक्ष्मी जी के नाम को काफी शुभ माना जाता है और सौभाग्य माना जाता है। इसलिए लक्ष्मी जी के नाम का काफी महत्व है।
लक्ष्मी जी के पिताश्री का नाम
पुराणों में उल्लेख है कि लक्ष्मी जी का अवतार समुद्र मंथन के दौरान निकले रत्नों के साथ हुआ था परंतु कुछ कथाओं के अनुसार महालक्ष्मी भृगु ऋषि की बेटी हैं।
घर में लक्ष्मी जी की कृपा कैसे बनाएं
यदि हम अपने घरों में लक्ष्मी जी की असीम कृपा चाहते हैं और चाहते हैं की लक्ष्मी जी का आशीर्वाद हमेशा परिवार पर बना रहे तो हमें घरों में साफ सफाई रखनी चाहिए। माता लक्ष्मी को साफ सुथरा घर ही पसंद होता है और इसके अलावा सफाई में इस्तेमाल झाड़ू भी बहुत प्रिय होती है। ऐसा कहा जाता है कि सुबह सुबह यदि आपके घर के बाहर कोई झाड़ू लगाते हुए आपको दिख जाए तो यह आपके लिए शुभ संकेत माना जाता है।
लक्ष्मी जी को खुश कैसे करें
यदि हम लक्ष्मी जी को खुश करना चाहते हैं तो हमें घर के मुख्य द्वार पर सरसों के तेल का दीप जलाना चाहिए। लाल धागे में सात मुखी रुद्राक्ष गले में धारण करने से अचानक धन की प्राप्ति होती है। लक्ष्मी जी से सच्ची श्रद्धा और भाव से प्रार्थना करनी चाहिए।
लक्ष्मी और महालक्ष्मी के रूप
लक्ष्मी जी भगवान विष्णु से जुड़ी होती हैं तो उन्हें लक्ष्मी या श्रीदेवी के रूप में माना जाता है। मूर्ति में उन्हें दो भुजाओं के साथ दिखाया जाता है।
जब अकेले और अपनी सभी व्यक्तिगत स्त्री की महिमा के साथ वह महालक्ष्मी के रूप में जानी जाती हैं और अपने ही मंदिर प्रतिष्ठापित होती हैं।
विष्णु जी के पैरों तरफ महालक्ष्मी होती हैं। शास्त्रों के अनुसार महालक्ष्मी भगवान विष्णु का साथ कभी नहीं छोड़ती। जहां विष्णु भगवान होंगे वही देवी लक्ष्मी स्वयं आएंगी। पुराण के अनुसार लक्ष्मी पूजन तभी सफल होता है जब गणेश वंदना के बाद लक्ष्मी नारायण की आराधना की जाती है।
महालक्ष्मी एवं विष्णु भगवान का विवाह कैसे हुआ
लक्ष्मी जी के लिए स्वयंवर का आयोजन हुआ था। माता लक्ष्मी पहले ही मन ही मन विष्णु को पति रूप में स्वीकार कर चुकी थी लेकिन नारद मुनि लक्ष्मी से विवाह करना चाहते थे। नारद जी ने सोचा कि यह राजकुमारी हरी रूपा का जीवन का वर्णन करेंगी। राजकुमारी ने नारद को छोड़कर भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दी तो इस प्रकार लक्ष्मी जी का स्वयंवर हुआ था।
माता लक्ष्मी के अवतार
महालक्ष्मी जो बैकुंठ में निवास करती हैं। स्वर्ग लक्ष्मी स्वर्ग निवास करती हैं ।राधा जी गोलोक में निवास करती हैं। दक्षिणा जो यज्ञ में निवास करती हैं। गृह लक्ष्मी जो ग्रह में निवास करती हैं। शोभा जो हर वस्तु में निवास करती हैं। रुक्मणी जो गोलोक में निवास करती हैं।सीता जी पाताल और भूलोक में निवास करती हैं।
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