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जानिए धनतेरस मनाने के पीछे की पैराणिक कथा और क्या हैं इनके पूजन विधि, मंत्रोजाप

My Jyotish Expert Updated 29 Oct 2021 06:16 PM IST
dhanteras
dhanteras - फोटो : google
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इन दिनों दिवाली की तैयारी बड़ी जोरों से हैं। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है. दीपावली  दीपों का त्योहार है. धनतेरस के दिन से दीपों के त्योहार का आरंभ होता है।   मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था। धन्वंतरि आयुर्वेद के जनक माने जाते हैं। वह भगवान विष्णु के अंश भी हैं। शास्त्रों के अनुसार धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा-अर्चना करने से भक्त को निरोगी रहने का आर्शीवाद मिलता हैं। इस साल धनतेरस 2 नवंबर को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं पूजा विधि, मंत्र और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी।


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इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे मान्यता है कि लक्ष्मी के आह्वान के पहले आरोग्य की प्राप्ति और यम को प्रसन्न करने के लिए कर्मों का शुद्धिकरण अत्यंत आवश्यक है। कुबेर भी आसुरी प्रवृत्तियों का हरण करने वाले देव हैं। धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का अवतरण समुद्र मंथन से हुआ था। दोनों ही कलश लेकर अवतरित हुए थे। अब हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें। फिर रोली, अक्षत, पुष्प, और कलावा अर्पित करें। इसके बाद नैवेद्य चढ़ाएं और भगवान धन्वंतरि के मंत्र (ऊं श्री धनवंतरै नमः) का 108 बार जाप करें। धनतेरस के दिन शाम को दीपदान करना चाहिए। अब आएं जानते हैं धनतेरस क्यों खास हैं। 


धनतेरस के पूजा विधि 

• सबसे पहले सुबह जल्द उठकर स्नान करें। फिर भगवान धन्वंतरि की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें। अब हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें। फिर रोली, अक्षत, पुष्प, और कलावा अर्पित करें। इसके बाद नैवेद्य चढ़ाएं और भगवान धन्वंतरि के मंत्र (ऊं श्री धनवंतरै नमः) का 108 बार जाप करें।


 धनतेरस के दिन शाम दीप जरूर प्रज्वलित करें 

• धनतेरस के दिन शाम को दीपदान करना चाहिए। यह दीपदान यमदेवता के नाम पर किया जाता है। इससे परिवार के सदस्यों की रक्षा होती है। इस दीए को घर के मुख्य दरवाजे की दहलीज पर रखा जाता है। शाम को सूर्यास्त के बाद इस दीपक को घर के अंदर से जलाकर लाएं। वह घर के बाहर दक्षिण की ओर मुख करके नाली या कचरे के पास रख दें। फिर मंत्र (मृत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह, त्रयोदश्यां दीपदानात्सूर्यजः प्रीतयामिति) 11 बार बोलें और दीपक के आसपास जल छिड़कें।धनतेरस के दिन शाम 06.30 बजे से रात्रि 08.11 बजे तक पूजा और दीपदान के लिए शुभ है।


 भगवान धन्वंतरि का  मंत्र

• ॐ श्री धनवंतरै नम:

 • ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धनवंतराये:,

• अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,

• त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप,

• श्री धन्वंतरि स्वरूप श्री श्री श्री अष्टचक्र नारायणाय नमः

• ॐ शंखं चक्रं जलौकां दधदमृतघटं चारुदोर्भिश्चतुर्मिः,

•  सूक्ष्मस्वच्छातिहृद्यांशुक परिविलसन्मौलिमंभोजनेत्रम,

• कालाम्भोदोज्ज्वलांगं कटितटविलसच्चारूपीतांबराढ्यम,

• वन्दे धन्वंतरिं तं निखिलगदवनप्रौढदावाग्निलीलम.




 धनतेरस मनाने के पीछे पैराणिक कथा 

• धनतेरस का पर्व धन और आरोग्य से जुड़ा हुआ है। धन के लिए इस दिन कुबेर की पूजा की जाती है और आरोग्य के लिए धनवन्तरि की पूजा की जाती है। इस दिन मूल्यवान धातुओं नए बर्तनों और आभूषणों की खरीदारी का विधान होता है।धनतेरस मनाने की पाैराणिक कहानी

शास्त्रों के मुताबिक, समुंद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी पर भगवान धन्वंतरि हाथों में कलश लिए समुंद्र से प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंशावतार माना जाता है। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही हिंदू धर्म में धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इसलिए यह पर्व धन के साथ स्वास्थ्य से भी जुड़ा है।धनतेरस का पर्व धन और आरोग्य से जुड़ा हुआ है। धन के लिए इस दिन कुबेर की पूजा की जाती है और आरोग्य के लिए धनवन्तरि की पूजा की जाती है। इस दिन मूल्यवान धातुओं, नए बर्तनों और आभूषणों की खरीदारी का विधान होता है। धनतेरस पर वाहन, घर, संपत्ति, सोना, चांदी, बर्तन, कपड़े, धनिया, झाड़ू आदि खरीदने का महत्व है। इस दिन सभी लोग शुभ महूर्त में ये वस्तुएं खरीदते हैं। 


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