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देवउठनी एकादशी की पुरानी कथा-
एक राजा के नगर में सभी प्रजा एकादशी का व्रत रखती थी। एकादशी के दिन नौकरो से लेकर किसी पशु को भी नहीं खिलाया जाता था। अनानास एक दिन एक व्यक्ति राजा के राज्य में आकर राजा से नौकरी मांगने लगा। राजा ने कहा हम तुम्हें नौकरी पर तो रख लेंगे लेकिन एक शर्त है कि प्रत्येक दिन तुम्हें खाने के लिए भोजन प्राप्त होगा किंतु एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाएगा।
राजा की शर्त को मानकर वह व्यक्ति नौकरी करने लगा किंतु एकादशी के दिन जब उसे केवल फल खाने को दिए गए तो वह राजा के सामने तेजगढ़ आने लगा बुला महाराज इससे मेरा पेट नहीं भर पाएगा मैं भूखा मर जाऊंगा कृपा करके मुझे अन्न दीजिए। फिर राजा ने उसे शर्त याद दिलवाने किंतु वहां छोड़ने को तैयार नहीं था अंत में राजा ने उसे चावल, दाल, और अन्न दे दिया।
वह व्यक्ति अपनी दिनचर्या के अनुसार नदी पर पहुंचकर स्नान करने के पश्चात घर जाकर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बनाया तो मैं भगवान को पुकारने लगा- हे भगवान भोजन तैयार हो चुका है। उस व्यक्ति के बुलाने पर भगवान पितांबर धारण किए हुए चतुर्भुज मे प्रकट हुए। उस व्यक्ति के साथ बैठकर भोजन किया। प्रेम से भोजन करने के बाद भगवान अंतर्धान हो गए और जो व्यक्ति अपने काम पर लौट गया।
अगली एकादशी 15 दिन पश्चात आई एकादशी पर वहां राजा से बोला की महाराज मुझे दुगना सामान दीजिए। पिछली एकादशी को तो मैं भूखा ही रह गया था। राजा ने कहां मैंने जो भोजन दिया था। वह एक व्यक्ति के लिए काफी था किंतु तुम भूखे कैसे रह गए। उस व्यक्ति ने कारण बताते हुए बताया कि मेरे साथ भगवान भी खाते हैं जिसके कारण हम दोनों के लिए समान काफी नहीं होता है। इस बात को सुनकर राजा को बड़ा अचंभा हुआ। राजा ने इस बात पर विश्वास करने से इंकार कर दिया। राजा ने कहा मैं इतना व्रत रखता हूं पूजा करता हूं किंतु भगवान ने मुझे कभी भी दर्शन नहीं दिए हैं।
उस व्यक्ति ने कहा है महाराज यदि आपको विश्वास नहीं होता है तो आप मेरे साथ चल कर स्वयं देख लीजिए। राजा एक पेड़ के पीछे छुपा कर बैठ गया। मैं व्यक्ति भोजन बनाने की तैयारी में लग गया और भोजन तैयार होने के बाद भगवान को पुकारता रहा किंतु भगवान शाम तक नहीं आए। अंत में उसने मैं कहां है भगवान यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर अपने प्राणों को त्याग दूंगा यह सुनने के बाद भी भगवान सामने नहीं आय आए अंत में वह व्यक्ति नदी की तरफ प्राण त्यागने के उद्देश्य से बढ़ता गया।
उस व्यक्ति के प्राण त्यागने के दृढ़ संकल्प को देख भगवान ने तुरंत प्रकट होकर उसे रोका तथा उसके साथ बैठकर भोजन ग्रहण करने के पश्चात उस व्यक्ति को अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। इस पूरी घटना को राजा चुप कर देख रहा था तो उसने सोचा कि व्रत उपवास से तब तक कोई लाभ नहीं होता जब तक मन शुद्ध ना हो। इस घटना से राजा ने सीख लेते हुए मन से व्रत और उपवास करें जिसके बाद राजा को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो गई।
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